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दीपिकाfनयुक्तिश्च अ० ४ सू. १७
भेदान् प्रतिपादयितुमाह--" तत्थ भवमवई दसक्झि - " इत्यादि ।
तत्र तेषु पूर्वोक्तेषु देवेषु भवनपतिवानव्यन्तर - ज्योतिष्क - वैमानिकरूपेषु भवनपतयस्तावद दशविधा भवन्ति, असुरकुमार - नागकुमार - सुपर्णकुमार - विद्युत्कुमाराऽग्निकुमार - द्वीपकुमारो दधिकुमार - दिशाकुमार - वायुकुमार स्तनितकुमारभेदात् । तत्राऽसुरनागादीनां द्वन्दसमासेन द्वन्द्वान्ते श्रूयमाणस्य कुमारशब्दस्य प्रत्येकमभिसम्बन्धात् तथाविधार्थलाभः । एते च दश भवनेषु वसनशीलत्वाद् भवनवासिशब्देनाऽपि व्यपदिश्यन्ते, भूमिष्ठत्वाद भवनानि उच्यन्ते तेषु वस्तुं शीलं येषां ते भवनवासिन इति व्युत्पत्तिः, कुमारवद् एते कान्तदर्शनाः कमनीयदर्शनाः सुकुमारा मृदुमधुरकलितललितगतयः शृङ्गाराभिजातरूपविक्रियाः कुमारबच्चोद्धत रूपवेषभूषा भाषाप्रहरणचरणपातयानवाहनाः कुमारवदेव स्फुटरागाः क्रीडनपरायणाश्च भवन्ति तस्मात्कुमारा उच्यन्ते । तत्राSसुरकुमाराऽऽवासेषु - असुरकुमाराः प्रतिवसन्ति ।
आवासास्तावत–महामण्डपाः विविधरत्नप्रभासितोल्लोलाः भवन्ति, तथाविधेषु आवासेषु प्रायशो बरहल्येना--सुर कुमारा वसन्ति कदाचिद् भवनेष्वपि निवसन्ति नागकुमारादयस्तु भवनेष्वेव चार प्रकार के देवों का प्रतिपादन किया गया है । अब उनमें से सर्वप्रथम गिनाये भवनवा - सियों के दस विशेष भेद बतलाते हैं
उनमें से अर्थात् पूर्वोक्त भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, इन चार प्रकार के देवों में से भवनपति दस प्रकार के हैं । उनके नाम ये हैं- (१) असुरकुमार (२) नागकुमार ( ३ ) सुवर्णकुमार ( ४ ) विद्युत्कुमार ( ५ ) अग्निकुमार (६) द्वीपकुमार ( ७ ) उदधिकुमार (८) दिशाकुमार ( ९ ) पवनकुमार और (१०) स्तनितकुमार |
भवनवासीनां विशेषतो दशभेदनिरूपणम् ४९७
असुर - नाग आदि में मूलसूत्र में द्वन्द्व समास है और द्वन्द्वसमास के अन्त में जोड़ा गया पद प्रत्येक शब्द के साथ जोड़ा जाता है; इस नियम के अनुसार यहाँ दसों भेदों के साथ कुमार शब्द का प्रयोग किया गया है । ये दसों भवनों में निवास करने के स्वभाव वाले हैं, अतएव भवनवासी भी कहलाते हैं । उनके निवास भूमि में होने से भवन कहे जाते हैं । उन भवनों में जो वास करते हों वे भवनवासी कललाते हैं ।
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ये सब कुमार के समान देखने में कमनीय होते हैं । सुकुमार होते हैं । इनकी गति अति ललित, कलित, मृदु और मधुर होती है । सुन्दर शृङ्गार, रूप और विक्रिया से युक्त होते हैं । कुमारों के समान रूप, वेषभूषा, भाषा, आयुध, यान, बाहन और चरणन्यास वाले, कुमारों के समान हो रागवान् और क्रीडापरायण होते हैं । इसी कारण इन्हें कुमार कहते हैं । असुरकुमार असुरकुमारावास में निवास करते हैं । उनके आवास विशाल मंडपों वाले और विविध प्रकार के रत्नों की प्रभा से चमकते हुए होते हैं । प्रायः असुरकुमार ऐसे आवासों में रहते हैं और कदाचित् भवनों में भी निवास करते हैं ।
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