________________
दीपिकानिर्युक्तिश्च अ. ५ सू. १९
जम्बूद्वीपादिद्वीपसमुद्र निरूपणम् ६१९ पदव्युत्पत्यां उभयपार्श्वजलपरिगतभूप्रदेशो द्वीप उच्यते, सर्वं खल्वेतद् जम्बूद्वीपादि द्वीपसमुद्रवलयजालमस्या एव रत्नप्रभायाः पृथिव्या उपरि- अवस्थितमवगन्तव्यम्, एतावानेव खलु तिर्यग्लोको वर्तते न ततः परमिति भावः ।
उक्तञ्च जीवाभिगमे ३–प्रतिपत्तौ २ उद्देशके द्वीपप्रकरणे - केवलिया णं भंते ! जंबुद्दीवा पण्णत्ता ? गोयमा असंखेज्जा जंबुद्दीवा नामघेज्जेहिं पण्णत्ता । केवलिया णं भते ! लवणसमुद्दा पण्णत्ता असंखेज्जा लवणसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता, एवं धायसंडावि एवं जाव असंखेज्जा सूरदीवा नामवेज्जेहिय, एगे देवे दीवे पण्णत्ते एगे देवोदे समु पण्णत्ते, एवं णागे, जक्खे, भूए, जाव - एगे सयंभूरमणे दीवे, एगे सयंभूरमण समुद्दे णामधेज्जेणं पण्णत्ते" ।
[ " छाया - " ] कियन्तः खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपा : प्रज्ञप्ता: ? गौतम ! असंख्येयाः जम्बूद्रीपाः नामधेयैः प्रज्ञप्ताः । कियन्तः खलु भदन्त ! लवणसमुद्राः प्रज्ञप्ता: : गौतम ! असंख्येयाः लवणसमुद्रा नामधेयैः प्रज्ञताः एवं घातकीखण्डा अपि, एवं - यावत् असंख्येया स्तूर्यदीपाः नामधेयैश्च, एको देवो द्वीपः प्रज्ञतः, एको देवोदधिः समुद्रः प्रज्ञप्तः, एकः स्वयम्भूरमण - समुद्रो नामधेयेन प्रज्ञप्तः इति ।
पुनश्चाग्रे तत्रैव जीवाभिगमे तृतीयप्रतिपत्तौ २ उद्देशके चोक्तम् " जावतिया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा जाव सुभा फासा एवतिया दीवसमुद्दा णामधेज्जेहिं पण्णत्ता-" जिसके सब (चारों ओर पानी हो वह द्वीप इस व्युत्पत्ति के अनुसार चारो पार्श्वों में जल से व्याप्त जो भूमिभाग होता है, वह द्वीप कहलाता है ।
जम्बूद्वीप एवं लवणसमुद्र आदि असंख्यात द्वीप समुद्रों का यह जो समूह है, सब इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर अवस्थित है । इतनी ही तिर्यक् लोक की सीमा है । स्वयंभूरमण समुद्र से आगे तिर्छा लोक नहीं है ।
जीवाभिगम सूत्र में तीसरी प्रतिपत्ति, दूसरे उद्देशक, सूत्र १८६ वें में द्वीप प्रकरण में कहा है
प्रश्न- भावन्ः जम्बूद्वीप कितने कहे गए हैं ?
उत्तर - गौतम ! जम्बूद्वीप नाम से असंख्यात द्वीप कहे गए
I
प्रश्न- भगवन् ! लवण समुद्र कितने कहे गए हैं ।
उत्तर - लवणसमुद्र नाम से असंख्यात समुद्र कहे हैं । इसी प्रकार धातकीखण्ड नामक द्वीप भी असंख्यात समझने चाहिए । यावत् सूर्यद्वीप नामक द्वीप भी असंख्यात हैं । देवद्वीप एक है, देवोदधि समुद्र एक है, इसी प्रकार नाग, यक्ष, भूत यावत् स्वयंभूरमण द्वीप एक है, स्वयंभूरमण नामक समुद्र भी एक है ।
आगे जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के द्वितीय उद्देशक में भी कहा है