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तत्त्वार्थसूत्रे रम्यकवर्षस्तु-नीलस्योत्तरतो रुक्मिणो दक्षिणतः पूर्वापर समुद्रयो मध्ये वर्तते । ५ हैरण्यवतवर्षश्च रुक्मिण उत्तरतः शिखरिणो दक्षिणतश्च पूर्वपश्चिमसमुद्रयोर्मध्ये सन्निविष्टोऽस्ति । ६ ऐश्वतवर्षः पुनः-शिखरिण उत्तरतस्त्रयाणां समुद्राणाञ्च मध्ये वर्तते । ७
विजयार्धेन-रक्तारक्तोदाभ्याञ्च विभक्तः षट् खण्डोऽस्तीति बोध्यम् । तथाच-वक्ष्यमाणैःषभिःकुलपर्वतैः प्रविभक्तानि-उक्तस्वरूपाणि खलु सप्तक्षेत्राणि जम्बूद्वीपे सन्तीतिफलितम् ॥२२॥
जम्बूद्वीपस्य स्वरूपं विष्कम्भायामाकारादिकञ्च पूर्वसूत्रे प्रतिपादितमेव, एतेषां सप्तक्षेत्राणाञ्च स्वरूपं प्ररूपयितुमाह---
मूलसूत्रम् - "तविभायगा पुव्वापरायया चुल्लहिमवंत-महाहिमवंत-निसढनीलवंत-रुप्पि-सिहरिणो छ वासहरपव्वया-" ॥२३॥
छाया-"तद्विभाजकाः पूर्वापरायताः क्षुल्लाहमवन्-महाहिमवन्-निषध-नीलवद्रुक्मि-शिखरिणः षड्वर्षधरपर्वताः-" ॥२॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे जम्बूद्वीपे वर्तमानानां सप्तानां भरतवर्षादीनां प्ररूपणं कृतम् , सम्प्रति तेषां विभाजकानां षण्णां क्षुल्लहिमवदादीनां वर्षधरपर्वतानां प्ररूपणं कर्तुमाह--"तविभायगा-" इत्यादि । तद्विभाजकाः--तेषां जम्बूद्वीपस्य भरतवर्षादीनां सप्तानां विभाजिनः पूर्वापरायताः पूर्वपश्चिमसमुन्द्रपर्यंतविस्तृताः पूर्वापरकोटिभ्यां लवणजलधिस्पर्शिनः--
(५) रम्यकवर्ष-नील पर्वत से उत्तर में और रुक्मि पर्वत से दक्षिण में, पूर्व-पश्चिम लवणसमुद्र के बीच में है।
(६) हैरण्यवत-रुक्मि पर्वत से उत्तर में और शिखरीपर्वत से दक्षिण में; पूर्व-पश्चिम लवणसमुद्र के मध्य में स्थित है।
(७) ऐरवतवर्ष-शिखरिपर्वत से उत्तर में है। यह तीन दिशाओं में लवणसमुद्र से घिरा हुआ है। विजयाध पर्वत तथा रक्ता और रक्तोदा नामक नदियों से विभक्त होने के कारण इसके छह खण्ड हो गए हैं।
___ फलितार्थ यह है कि आगे कहे जाने वाले छह कुल पर्वतों से विभक्त होने के कारण उक्त स्वरूप वाले सात क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं ॥२२॥
जम्बूद्वीप का स्वरूप लम्बाई-चौड़ाई आदि पहले ही दिखलाया जा चुका है। उसमें स्थित सात क्षेत्रों के स्वरूप का प्रतिपादन करने के लिए सूत्र कहते हैं ।
'तविभायगा' इत्यादि । सू० २३॥
मूलसूत्रार्थ-उक्त सात क्षेत्रों को विभाजित करने वाले, पूर्व से पश्चिम तक लम्बे चुल्लहिमवन्त, महाहिमवन्त, निषध, नीलवन्त, रुक्मि और शिखरि नामक छह वर्षधर पर्वत हैं ॥२३॥
तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में, जम्बूद्वीप में विद्यमान भरतवर्ष आदि सात क्षेत्रों का निरूपण किया गया है । अब उन क्षेत्रों को विभक्त करने वाले चुल्लहिमवन्त आदि छह वर्षघर