________________
६५८
एकश्चैकोनविंशतिभागयोजनरूपश्च ८४२१
१ विद्यते ।
१९
नीलपर्वतविष्कम्भः पुन - - चित्वारिंशदधिका-ऽष्टशतोत्तर षोडशसहस्रयोजन प्रमाणः
कोनविंशतिभागयोजनरूपश्च
१६८४२
वर्तते इति भावः ।
तत्वार्थ सूत्रे
१९
एवं - नीलपर्वतोपरि केसरिहूदस्तावत् — चतुःसहस्रयोजनविष्कम्भो वर्तते, केसरिहृदमध्यभागेच चतुर्योजनाssयामविष्कम्भं पुष्करमेकं विलसति - । रुक्मिपर्वतो परिच- पुण्डरीक नामहृदो द्विगुणविष्कम्भो विशालो दशयोजनाऽवगाहश्च वर्तते । पुण्डरीकहूदमध्यभागेच - पूर्वोक्त पुष्करापेक्षया द्विगुणायामविष्कम्भं पुष्करमेकं वर्तते । एवं शिखरिपर्वतो परिच- महापुण्डरीक नामहूद स्तद् द्विगुणविस्तारो दशयोजना - ऽवगाहश्च विलसति ।
४
१९
तथाच-महाविदेहवर्षस्य-चतुरशीत्यधिक षट्शतोत्तरत्रयस्त्रिंशत्सहस्रयोजनप्रमाण चतुरेकोनविंशतिभागयोजनविष्कम्भः ३३६८४ प्रमाणतया तदर्घविष्कम्भस्तावद् नीलपर्वतो वर्तते । नीलपर्वतार्धविष्कम्भो रम्यकवर्षो वर्तते, रम्यकवर्षार्धविष्कम्भो रुक्मिपर्वतो विद्यते, रुक्मिपर्वता विष्कम्भो हैरण्यवतवर्षोऽस्ति । हैरण्यवतवर्षार्धविष्कम्भश्च शिखरि पर्वतो भवति, शिखरपर्वता विष्कम्भः पुनरैरवतवर्षो भवतीति फलितम् ।
“उक्तञ्च स्थानाङ्गे २ स्थाने २- उद्देशके ८७ सूत्रे - " जंबू मंदरस्स पब्बयस्सय उत्तरदाहिणेणं दो वासहरपव्वया बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नं णाति१° योजन विस्तृत है और रम्यकक्षेत्र का विस्तार ८४२१ योजन का
रुक्मपर्वत ४२१०
१९
१९
है । नीलपर्वत का विस्तार १६८४२
१९
इसी प्रकार नील पर्वत के ऊपर जो केसरी नामक हद है, उसका विष्कंभ दो हजार योजन का है । केसरी हृद में चार योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला एक पुष्कर शोभायमान है । रुक्मी नामक पर्वत के ऊपर पुण्डरीक हद है जो उससे आधा विस्तार वाला है, विशाल है और दस योजन के अवगाह वाला है । पुण्डरीक हृद के मध्यभाग में पूर्वोक्त पुष्कर की अपेक्षा से आधा लम्बा-चौड़ा एक पुष्कर है । इसी प्रकार शिखरी पर्वत के ऊपर महापुण्डरीक नामक हृद है, जिसका विस्तार उससे भी आधा है और अवगाह दस योजन का है ।
इस प्रकार तेतीस हजार छह सौ चौरासी योजन तथा उन्नासिया चार भाग महाविदेह क्षेत्र का विस्तार है । नील पर्वत का विस्तार इससे आधा है । नील पर्वत का जितना विस्तार है। उससे आधा विस्तार रम्यक वर्ष का है, रम्यक वर्ष से आधा विस्तार रुक्मी पर्वत का है, रुक्मी
योजन का है ।