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तत्वार्थ सूत्रे
द्वीप वर्तते, इत्यादिरीत्या बोध्यम् । अतएव - वलयाकाराः खलु ते - लवणोधधिप्रभृतयः स्वयम्भूरमणार्थन्ताः द्वोपसमुद्राः सन्ति । सर्वद्वीपसमुद्रान्तर्वर्ती जम्बूद्वोपस्तु - कुलालचक्राकृतिः प्रतरवृत्तोवर्तते, न तु वलयाकृतिरिति वदयते -- उक्तञ्च -- जीवाभिगमे ३ - प्रतिपत्तौ २ - उद्देशे
"जंबद्दीवं णामं दीवं - लवणे णामं समुहे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए सव्वओ समता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठ - " जम्बूद्रोपो नाम द्वीपो लवणो नाम समुद्रो वृत्तो वलयाकार - संस्थानसंस्थितः सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्य - खलु तिष्ठति -" इति ।
पुनस्तत्रैवोक्तम् -- "जंबुद्दीवाइया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणओ एगविह विषाणा facereओ अणेगविहविधाणा दुगुणा दुगुणे पडुप्पाएमाणा पवित्थरमाणा "ओभास माणवीचिया - " इति ।
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जम्बूद्रीपादिका द्वीपाः, लवणादिकाः समुद्राः संस्थानतः ऐकविधविधानाः, विस्तारतोऽनेकविधविधानाः द्विगुण - द्विगुणाः प्रत्युत्पन्नायमानाः अवभासमानवीचयः - इति” ॥२०॥ मूलसूत्रम् " सव्वमंतरे वट्टे मेरुणाभिए लक्खजोयणविक्खंभे जंबुद्दीवे ॥ २१ ॥ छाया - " सर्वाभ्यन्तरो वृत्तो मेरुनाभिकः लक्षयोजनविष्कम्भो जम्बूद्वीपः - " ॥ २१ ॥ तत्वार्थदीपिका - पूर्व सूत्रे - यद्यपि सामान्यतः सर्वद्वीपसमुद्राणां विष्कम्भा - ssयामा कारादिस्वरूपाणि प्ररूपितानि, तथापि तत्रा - ऽपवादरूपेण जम्बूद्वीपस्या -ऽन्यापेक्षया किञ्चिद् को परिवेष्टित करके पुष्करवर द्वीप स्थित है । इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए । जम्बूद्वीप और लवणसमुद्र आदि सभी द्वीप - समुद्र वलयाकार हैं अर्थात् हाथ में पहनी जाने वाली चूड़ी के समान गोलाकार हैं । मगर इन सभी द्वीप - समुद्रों के मध्य में स्थित यह जम्बूद्वीप कुंभार के चाक के समान प्रतरवृत्त अर्थात् सपाट गोल है । यह वलय के सदृश गोलाकार नहीं है । जीवाभिगमसूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के दूसरे उद्देशक में कहा है- 'जम्बूद्वीप नामक द्वीप को वृत्त वलयाकार संस्थान वाला लवण नामक समुद्र सभी ओर से घेर कर स्थित है ।' आगे वहीं पुनः कहा है- 'जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवण आदि समुद्र आकार में एक ही प्रकार के हैं अर्थात् सभी गोलाकार हैं मगर विस्तार में अनेक प्रकार के हैं - किसी का भी विस्तार किसी के बराबर नहीं है । सब एक-दूसरे से दुगुने - दुगुने विस्तार वाले हैं; पन्नाय - मान हैं, विस्तृत हैं और अवभासमान वीचियों वाले हैं ||२०|
'सव्वन्तरे वट्टे' इत्यादि ॥ सू० २१||
मूलसूत्रार्थ – समस्त द्वीप के भीतर, गोलाकार, मध्य में मेरु पर्वतवाला, तथा एक लाख योजन विस्तार वाला जम्बूद्वीप है ||२१||
तत्त्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्र में यद्यपि सामान्य रूप से समस्त द्वीपों और समुद्रों के विस्तार लम्बाई, चौड़ाई आदि का निरूपण किया जा चुका है, तथापि अन्य द्वीपों की अपेक्षा किंचित्