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दीपिकानियुक्तिश्च अ०४ सू. २८
भवनपत्यादिदेवानामायुःप्रभावादेन्यूनाधिकत्वम् ५४५
____ एवम् असुरकुमारांदि सौधर्मेशानकल्पं यावद् देवाः सप्तरत्निशरीरोच्छ्राया भवन्ति । ततः परं सहस्रारकल्पपर्यन्तं द्वयोयो:कल्पयो एकैकरत्निहीनशरीरोच्छ्राया भवन्ति अयं भावः-सनत्कुमारमाहेन्द्रदेवा षइरत्निशरीरोच्छायाः ब्रह्मलान्तकदेवाः पञ्चरत्निशरीरोच्छ्रायाः महाशुक्रसहस्रारदेवाश्चतूरत्निशरीरोच्छ्राया भवन्तीति । आनत-प्राणताऽऽरणा ऽच्युतकल्पेषु रत्नित्रयशरीरोच्छ्राया देवा भवन्ति । अवेयकेषु रनिद्वयशरीरोंच्छ्रायाः, पञ्चाऽनुत्तरौपपातिकेषु मध्ये विजयादि चतुर्षु विमानेषु एकरत्निशरीरोच्छ्राया देवा भवन्ति ।
सर्वार्थसिद्धविमाने तु देवाः किञ्चिदून रत्निशरीरोच्छ्राया देवा भवन्तीति ।
वैमानिकानां विमानसंख्या यथा--सौधर्मे विमानानि-द्वात्रिंशच्छतसहस्राणि । इशानेऽष्टाविंशतिशतसहस्राणि । सनत्कुमारे -द्वादशसहस्राणि । माहेन्द्रे-ऽष्टशतसहस्राणि । ब्रह्मलोके चत्वारि शतसहस्राणि । लान्तके-पञ्चाशत् सहस्राणि । महाशुक्र-चत्वारिंशत् सहस्नाणि सहवारे षट् सहस्राणि । आनत-प्राणता-ऽरणा-ऽच्युतेषु सप्तशतानि तत्र आनतप्राणत योर्द्वयोर्देवलोकयो श्चत्वारिशतानि आरणाच्युतयोयोर्देवलोकयो स्त्रोणि शतानि विमानानामिति संमेल्य चतुर्षु देवलोकेषु सप्तशतानि भवन्तीति ।
प्रैवेयकत्रिके-क्रमशः एकादशाधिकसप्ताधिकशतमेकशतं च विमानानामिति । अनु
असुरकुमारों से लेकर सौधर्म-ईशान कल्प तक के देवों का शरीर सात हाथ ऊँचा होता है । इससे आगे दो दो कल्पों में, सहस्रार कल्प पर्यन्त, एक-एक हाथ की ऊँचाई कम होती जाती है । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में देवों की छह हाथ की ऊँचाई होती है। ब्रह्म और लान्तक कल्प में देवों की ऊँचाई पाँच हाथ की होती है । महाशुक्र और सहस्रार कल्प में देवों की ऊँचाई चार हाथ की होती हैं ।
आनत प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में देवों का शरीर तीन हाथ ऊँचा होता है । अवेयक विमानों के देवों के शरीर की ऊँचाई दो हाथ की है । पाँच अनुत्तरोपपात्तिक देवों में विजयादि चार विमानों के देवों का शरीर एक हाथ का होता है और सर्वार्थ सिद्ध देवों का शरीर कुछ कम एक हाथ का ही होता है।
अब वैमानिकों के विमानों की संख्या बतलाते हैं-सौधर्म देवलोक में बत्तीस लाख विमान हैं ईशान देव लोक में अट्ठाइस लाख, सनत्कुमार में वारह लाख, माहेन्द्र में आठ लाख, ब्रह्मलोक में चार लाख, लान्तक में पचास हजार, महाशुक्र में चालिस हजार, सहस्रार में छह हजार तथा आनत प्राणत आरण और अच्युत कल्पों में सात सौ विमान हैं । उनमें आनत प्राणत, दो देवलोकों में चारसौ विमान हैं और मारण अच्युत इन दो देवलोकों में तीनसौ विमान हैं, ऐसे सात सौ विमान हैं । वयकत्रिक में क्रमशः एकसौ ग्यारह, एकसौ सात और एकसौ विमान होते हैं।