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बीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. २८ भवनपत्यादिदेवानामायुःप्रभावावेन्यूनाधिकत्वम् ५४७
एवं-यावत् स्तनितकुमाराणाम् । एवम्-औधिकामां वानव्यन्तराणाम् । एवं ज्योतिष्काणामपि । सौधर्मेशानदेवानां खलु-एवज्वोत्तरवैक्रिया, यावदच्युतः कल्पः । नवरं सनत्कुमारे भवधारणीया जघन्येना-ऽनुगुलस्यासंख्येयभागः ।
उत्कृष्टेन षड्रत्नयः । एवं माहेन्द्रेऽपि, ब्रह्मलोके लान्तकेषु पञ्च रत्नयः । महाशुक्रसहस्रारयोश्च चतस्रो रत्नयः । आनत-प्राणता-ऽऽरणा-ऽच्युतेषु तिनो रत्नयः । अवेयककल्पातीतवैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियाणां वैक्रियशरीरावगाहना किं महालया प्रज्ञप्ता ! गौतम ! अवेयक देवानाम् एका भवधारणीया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, सा जन्घयेनाऽङ्गुलस्याऽसंख्येयभागः उत्कृष्टेन द्वे रत्निः ॥ __असुरकुमाराणं भंते ! ओहिणा केवइ खेत जाणइ पासइ ? गोयमा ! जहण्णेणं पणवीसं जोयणाई, उक्कोसेणं असंखेज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति । नागकुमाराणं जहण्णेणं पणवीसं जोयणाई उक्कोसेणं संखेज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति एवं जाव थणियकुमारा ०००० वाणमंतरा जहा नागकुमारा । जोइसियाणं भंते अंगुल के संख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख योजन की होती है ।
इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझ लेना चाहिए । सामान्य रूप से वानव्यन्तरों की, ज्योतिष्कों की तथा सौधर्म और ईशान देवों की अवगाहना भी पूर्वोक्त ही है । अच्युत कल्प तक के देवों के उत्तरवै क्रिय शरीर को अवगाहना इसी प्रकार अर्थात् एक लाख योजन की है । सनत्कुमार कल्प के देवों के भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्यअंगुल के असंख्यतवें भाग की और उत्कृष्ट छह हाथ की है' माहेन्द्र कल्प में भी इतनी ही अवगाहना है । ब्रह्मलोक और लान्तक कल्पों में पाँच हाथ की, महाशुक्र और सहस्रार कल्प में चार हाथ की एवं आनत प्राणत आरण और अच्युत कल्प में तीन हाथ की अवगाहना होती है।
प्रश्न-अवेयक कल्पातीत वैमानिक पंचेन्द्रिय देवों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ?
उत्तर-गौतम ! प्रैवेयक देवों में एक भवधारणीय शरीर को ही अवगाहना होती है ( उत्तर वैक्रिय शरीर की अवगाहना नहीं होती , क्यों कि वे देव उत्तर वैक्रिय शरीर बनाते नहीं हैं-उनमें वैसी उत्सुकता-उत्कंठा नहीं होती ) । भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट दो हाथ की होती है। अनुत्तरविमानों के देवों के विषय में भी ऐसा ही समझ लेना चाहिए, अर्थात् उनमें भी भवधारणीय शरीर की ही अवगाहना होती है । और वह एक हाथ की होती है । उत्तर वैक्रिय शरीर वे भी नहीं बनाते हैं।"