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दोक्किानियुक्तिश्च अ० ४ सू. १७
भवनवासीनां विशेषतो दशमेदनिरूपणम् ४९९
नागकुमाराश्च-शिरोमुखेष्वधिकप्रतिरूपाः पाण्डुरवर्णाः श्यामा:-मृदुललितगतयः शिरःसु नागफणालाञ्छिता भवन्ति--२ । सुवर्णकुमारास्तु-अधिकप्रतिरूपग्रीवोरस्काः-सुवर्णवर्णाः गरुडला ञ्छिता भवन्ति- ३ ।
विद्युत्कुमाराश्च-स्निग्धाः रक्तवर्णाः-वज्रलाञ्छिता भवन्ति-४ अग्निकुमारास्तु मानोन्मानप्रमाणयुक्ता रक्तवर्णाः पूर्णकलशलाञ्छना भवन्ति-५ द्वीपकुमाराश्चो-रःस्कन्धभुजाग्रहस्तेषु-अधि कप्रतिरूपाः रक्तवर्णा अवदाताः सिंहलाञ्छना भवन्ति-६ उदधिकुमाराः पुनरुरुकटिष्वधिक प्रतिरूपाः। पाण्डुरवर्णा अश्वलाञ्छना भवन्ति-७दिक्कुमाराः पुनर्जाग्रपादेषु-अधिकप्रतिरूपाः सुवर्णवर्णाः गजलाञ्छना भवन्ति-८ वायुकुमारास्तु-स्थरस्थूलवृत्तगात्रा निम्नोदरा नोलवर्णा मत्स्यलाञ्छना भवन्ति ९-स्तनितकुमारास्तु स्निग्धाः स्निग्धगम्भीरानुनादमहास्वनाः सुवर्णवर्णा वर्धमानचिह्ना भवन्ति १०
सर्वे च नानावस्त्राभरणा अवगन्तव्याः । तत्रा-ऽसून् प्राणान् रान्ति-गृह्णन्ति नारकाणां परस्परयोधनेन दुःख जनयन्तीति-असुराः, प्रायेण तेषां संश्लिष्टपरिणामत्वात्, असुराश्च-ते
नागकुमारों का शिर और मुख अधिक सुन्दर होता है । थे पाण्डुर वर्ण मृदु और ललिम गति वाले और मस्तक पर सर्प के चिन्ह से युक्त होते हैं।
सुवर्ण कुमारों की ग्रीवा और वक्षस्थल अधिक सुन्दर होते हैं। सुवर्ण वर्णवाले सुन्दर होते हैं। उनके मुकुट पर गरुड़ का चिह्न होता है।
विद्यत्कुमार स्निग्ध (चिकने), देदीप्यमान रक्तवर्णवाले सुन्दर और वज्र के चिह्नवाले होते हैं।
अग्निकुमार मान, उन्मान और प्रमाण से युक्त भास्वर, सुन्दर रक्तवणे, और पूर्णकलश के चिह्न से युक्त होते हैं।
द्वीपकुमार वक्ष, स्कंध, भुजा और हाथों के अग्रभाग में अधिक सुन्दर होते हैं, रक्त वर्ण होते हैं, सलौने होते हैं और सिंह के चिहन से युक्त होते हैं।
उदधिकुमारों की उरु और कटि भाग बहुत सुन्दर होता है । वर्ण से पाण्डुर वर्ण होते हैं । उनके अश्व धोडे का चिन्ह होता है।
दिक्कुमारों की जघाएँ और पैरों का अग्रभाग अधिक सुन्दर होता है। वे सुवर्णवर्ण और गज के चिह्न वाले होते हैं। वायुकुमार स्थिर स्थूल और गोल गात्र वाले, धंसे हुए उदर वाले, नीलवर्ण सुन्दर और मत्स्य के चिह्न वाले होते हैं । स्तनितकुमार स्निग्ध एवं गम्भीर तथा महान् ध्वनि वाले, सुवर्ण वर्ण तथा वर्द्धमानक शराव-सिकोरा, के चिह्न वाले होते हैं । ये सभी नाना प्रकार के वस्त्रों और आभरणों वाले होते हैं । जो नारक जीवों के असु-प्राणों को ग्रहण करते हैं, अर्थात् उन्हें आपस में लड़ा-लड़ाकर दुःख उत्पन्न करते हैं, वे असुर कहलाते है । असुर प्रायः संक्लिष्ट परिणामों वाले होते हैं । असुर रूप कुमारों को असुर