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तत्त्वार्थसूत्रे
"संज्वलयन्ति यतिं यत् संविग्नं सर्वपापविरतमपि ।
तस्मात् संज्वलना इत्यप्रशमकरानिरुच्यन्ते- ॥१॥ इति, संज्वलनाश्च ते कषायाः संज्वलनकषायाः तथाचैकैकस्याऽप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यानसंज्वलनकषायस्य क्रोधादयश्चत्वारो भेदा इति द्वादशभेदाः संजाताः पूर्वोक्ताः, अनन्तानुबन्धिनश्च चत्वारः क्रोधमान-माया-लोभा इति कषायमोहनीयस्य षोडशभेदाः भवन्ति- । तत्रा-ऽप्रत्याख्यानकषायक्रोधमान-माया-लोभोदाहरणानि भूराज्य-ऽस्थि.मेषशृङ्ग-कर्दमरागाः, ।
प्रत्याख्यानकषायक्रोधमानादेः रेणुराजि-काष्ठ-गोमूत्रमार्ग-खञ्जनरागा उदाहरणानि । संज्वलनकषायक्रोधादेरुदाहरणानि जलराजि-तृणशलाकावलेखनिकाहरिद्रारागाः भवन्ति इति षोडशविधं कषायवेदनीयं प्ररूपितम् ।
सम्प्रति-नवविधं नोकषायवेदनीयं प्रतिपादपति, हास्य-रतिः, अरतिः-शोकः, भयं-जुगुप्सापरीषह के उपस्थित होने पर एकदम संज्वलित (कषायाविष्ट) कर देते हैं । इस कारण उन्हें संज्वलन कषाय कहते हैं। कहा भी है
जो कषाय संसार से विरक्त और समस्त पापों से रहित साधु को भी संज्वलित कर देते हैं, अर्थात् मुनि-अवस्था में भी जिनकी सत्ता रहती है, उन्हें संज्वलन कषाय कहते हैं ।
संज्वलन रूप कषायों को संज्वलन कषाय कहते हैं । इस प्रकार अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषाय के क्रोध आदि चार-चार भेद होने से बारह भेद हो जाते हैं। इनमें अनन्तानुबन्धी के पूर्वोक्त चार भेद सम्मिलित कर देने पर कषाय मोहनीय के सोलह भेद होते हैं । अप्रत्याख्यान क्रोध मान, माया और लोभ के उदाहरण ये हैं-क्रोध का स्वभाव तालाब के तरड़, (१) मान का स्वभाव अस्थि (हड्डी) का स्तम्भ (२) माया का स्वभाव मेष शृङ्ग (मेढेका सींग) और लोभका स्वभाव कदम राग । अर्थात् अप्रत्याख्यान क्रोध का स्वमाव तालाबकी तड़ (दरार) मान का स्वभाव हड्डी का स्तम्भ, मायाका स्वभाव मेष-मेंढा-का सींग, लोभ का स्वभाव कर्दम राग के समान होता है। .. प्रत्याख्यान कषाय के क्रोध मानादि के उदाहारण है-क्रोध का स्वभाव बालू में खींची हुई लकीर, मान का स्वभाव काष्ट का स्तम्भ, मायाका स्वभाव चलते बैल के मूत्र, लोभ का स्वभाव खंजन के समान होता है । संज्वलन क्रोध जलमें खींची हुई रेखा, मान का स्वभाव तृण का स्तम्भ, माया का स्वभाव अवलेखनिका वांस की खपची-वांस की छिली हुई पतली त्वचा, लोभ का स्वभाव हल्दी पतंग के रंग के समान होते है । इस प्रकार कषाय वेदनीय के सोलह भेदों का निरूपण किया गया है।
अब नौ प्रकार के नो कषाय कर्म का प्रतिपादन करते हैं-(१) हास्य (२) रति (३) अरति