________________
तत्वार्थ
“मूलसूत्रम् - - काय भावभासुज्जुयअविसंवादण जोगेहिं सुहनामकम्मं " ॥७॥ छाया - "काय भावभाषाऋजुनाऽविसंवादनयोगैः शुभनामकर्म ॥ ७ ॥ तत्त्वार्थदीपिका – “पूर्वसूत्रे देवायुप्यरूपपुण्य कर्मबन्धहेतवः प्ररूपिताः सम्प्रति - शुभनामकर्मबन्ध हेतून् प्ररूपयितुमाह-
४४६
“काय भावभासुज्जुयअविसंवादणजोगेहिं सुहनामकम्मं " इति कायऋजुता भावऋजुता-भषाऋजुताऽविसंवादनयोगरूपैश्चतुर्भिः कारणैः शुभनामकर्म बन्ध्यते । तत्र कायऋजुता कायस्य सरलता परवञ्चनकायचेष्टा वर्जनम् १ | भावऋजुता - अत्र भावशब्देन मनो गृह्यते, तेन मनोयोगऋजुता - मनसः सरलता. परवञ्चनमनः प्रवृत्तिवर्जनम् २ | भाषाऋजुता भाषा सरलताअकुटिलभाषणम् ३ । अविसंवादनयोगः - विसंवादनम् अन्यथा प्रतिपन्नस्यान्यथाकरणं तद्रूपो योग व्यापारः तेन वा योगः सम्बन्धो विसंवादनयोगः, तदभावात् - अविसंवादनयोगः ४ । एभिश्चतुर्भिःतुभिः शुभनाम कर्म बन्धो भवतीति । अस्य सप्तत्रिंशत्प्रकारैरुपभोगो जायते ॥ ७ ॥ तत्त्वार्थनिर्युक्तिः- पूर्वं सरागसंयम-संयमासंथमा - कामनिर्जरा-T- बालतपः प्रभृति देवायुष्यरूपपुण्यकर्मवन्धहेतवः प्ररूपिताः, सम्प्रति - शुभनामकर्मबन्धहेतुतया कायऋजुतादि चतुष्टयं प्रतिपादयितुमाह
सूत्रार्थ - 'काय भावभासुज्जुयअविसंवादण' इत्यादि । सूत्र- ७
काय, भाव–मन, भाषा– वचनकी सरलतासे, तथा अविसंवादन प्रतारण-ठगाई -न करने से शुभनामकर्मका बन्ध होता है ||७||
तत्वार्थदीपिका -- पूर्वसूत्र में देवायु रूप पुण्यकर्म के बन्ध के कारणों की प्ररूपणा की गई है। अब शुभनामकर्म के बन्ध के कारण कहते हैं
काय की ऋजुता भाव अर्थात् मन की ऋजुता २ भाषा अर्थात् वचन की ऋजुता ३ और अविसंवादन-कपटरहितयथार्थ प्रवृत्ति ४ इन चार कारणों से शुभनामकर्मका बन्ध होता
|
है । कायकी सरलताको काय ऋजुता कहते हैं, ? एवं भाब अर्थात् मनकी सरलता को भावऋजुता कहते है । भाषा अर्थात् वचन की सरलता को भाषा ऋजुता कहता है । तथा धोखा देना अथवा ठगाई करना विसंवादन है, इसका अभाव अविसंवादन होता है, इसके योग - संबन्ध को अविसंवादन योग कहते हैं ४ । तात्पर्य यह है कि इन चारे कारणों से शुभनामकर्म का बन्ध होता है वह सैंतीस शुभ प्रकृतियों से भोगा जाता है || ७||
तत्वार्थनियुक्ति -- इससे पूर्व बतलाया गया है कि सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिजरा और बालतपस्या आदि देवायु रूप पुण्य कर्म के बन्ध के कारण हैं । अब शुभनाम कर्म के चार कारणों का कथन करते हैं---