________________
दीपिकनियुक्तिश्च अ ३ सू. २१
अनुभावबन्धनिरूपणम् ४१३ वरोधो भवति, एवं रीत्या सर्वकर्मणां स्व-स्वकार्येसुखदुःखरूपाऽनुभूतिर्भवति । स च कर्मविपाकः तथा तथाच भवति, तत्तद् अन्यथा भवति, तत्र-येनाऽध्यवसायप्रकारेण यादृग्भावबद्धं कर्म, तत्तथा, तेनैव प्रकारेण विपच्यते-तत्तत्कर्ममनुभूयते । अन्यथा च प्रकारान्तरेणापिच विपच्यते तत्तत्कर्मफलमsनुभूयते । स च विपाको-ऽनुभाव स्तीव-मन्द-मध्यावस्थाभेदो भवति । तत्र-कदाचिच्छुभमपि कर्माऽशुभविपाकतयाऽनुभूयते, अशुभञ्च-शुभविपाकतयाऽनुभूयते, इत्येवं वैविध्यं कर्मफलविपाकेऽवगन्तव्यम् । तथाचोक्तम्
"तासामेव विपाकनिबन्धो-यो नाम निर्वचनभिन्नः ।।
"स-रसोऽनुभाव संज्ञ-स्तीवो-मन्दोऽथ मध्योवा ॥१॥ इति
तत्र खलु ज्ञानाद्यावरणाद्यष्टप्रकारकेषु मूलप्रकृतिकर्मसु किञ्चित्कर्म पुद्गलेस्वेव विपच्यतेऽनुभूयते, विविधप्रकारेण पुद्गलान् तत्कर्म परिणतिमापादयति । किञ्चित्पुनः कर्मभावविपाकिभवति, भवान्तरे प्राप्ते जन्मवतो जीवस्य शरीरधारिण एव विपच्यते तेनाऽनुभूयते । किञ्चित्खलु कर्म क्षेत्रविपाकिभवति, क्षेत्रान्तरे विपच्यते-नरकादिक्षेत्रादावनुभूयते । किञ्चित्कर्म पुनर्जीव विपाकिभवति-तस्मिन्नेव जन्मनि जीवे विपच्यते । उक्तञ्च–“संहननं संस्थानं वर्णस्पर्शरसगन्ध नामानि ।
____ अङ्गोपाङ्गानि तथा शरीरनामानि सर्वाणि ॥१॥ का रुकना है। इस प्रकार सभी कर्मों के द्वारा उत्पन्न होने वाले सुख-दुःख रूप अनुभूति होती है । वह कर्मविपाक अमुक-अमुक प्रकार का होता है । जिस प्रकार के अध्यवसाय से जो कर्म जिस रूप में बाँधा है, वह उसी रूप में फल प्रदान करता है। वही कर्मफल जीव को भोगना पड़ता है। कभी-कभी अन्य प्रकारे से भी भोगा जाता है।
____कर्म का विपाक कोई तीव्र, कोई मन्द और कोई मध्यम होता है । कभी-कभी शुभ रूप में बाँधे हुए कर्म का फल अशुभ रूप में भोगा जाता है और अशुभ रूप में बाँधे कर्म का फल शुभ रूप में भोगा जाता है । इस प्रकार कर्म फल विपाक में द्विरूपता समझना चाहिए । कहा भी है
ज्ञानावरण आदि आठ कर्म प्रकृतियों में से कोई कर्म पुद्गलविपाकी होता है। उसका फल पुद्गलों में ही होता है अर्थात् वह कम पुद्गलों में ही विविध प्रकार का परिणमन उत्पन्न करता है। कोई कर्मप्रकृति भवविपाकी होती है । उस का फल भवान्तर की प्राप्ति होने पर शरीरधारी जीव ही भोगता है। कोई-कोई कर्मप्रकृति क्षेत्रविपाकी होती है, उस का फल क्षेत्र की प्रधानता से भोगा जाता है। कोई कर्म जीवविपाकी होता है। उस का फल आत्मा को ही भोगना पड़ता है अर्थात् आत्मा के गुणों को वह प्रभावित करता है । कहा है
संहनन, संस्थान, वर्ण, स्पर्श, रस, गंधनामकर्म, अंगोपांगनामकर्म, सब शरीरनामकर्म, अगुरु लघु, पराघात उपघात आतप उद्योत प्रत्येक शरीर स्थिर शुभ नामकर्म तथा इनके विप