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ममिकानियुक्तिश्च अ. २ सू० १५
- धर्माधर्माकाशानां लक्षणानि - २३३ अथ तयोरनुपलब्धेः शशगृङ्गवन्न तौ धर्माधर्मों स्त इति चे दुच्यते तथासति-सर्वप्रतिवादिनामविप्रतिपत्तिः स्यात् यतः सर्वेऽपि प्रतिवादिनः प्रत्यक्षाऽप्रत्यक्षपदार्थान् अभ्युपगच्छन्ति तथाअस्मान्प्रति हेतोरसिद्धत्वं भवति सर्वज्ञस्य केवलिनो निरतिशयप्रत्यक्षज्ञानचक्षुषा धर्माधर्मादीनां सर्वेषामुपलभ्यमानत्वात् तदुपदेशाच्च श्रुतज्ञानिनामपि धर्माधर्मादिप्रतिपत्तिसम्भवात् ।
उक्तञ्च व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवती सूत्रे १३ शतके ४ उद्देशके-"धम्मत्थिकाए णं भंते ! जीवाणं किं पवत्तइ-? गोयमा ! धम्मस्थिकाएणं जीवाणं आगमणगमणभासुम्मेसमणजोगा-वाजोगा-कायजोगा जे यावन्ने तहप्पगारा चला भावा सव्वे ते धम्मत्यिकाए प्रवतंति: गइलक्खणेणं धम्मत्थिकाए । ___ अधम्मत्थिकाए णं भंते-? जीवाणं किं पवत्तइ ? गोयमा ? अहम्मत्थिकाएणं जीवाणं ठाणनिसीयणतुयट्टणमणस्स य एगत्तीभावकरणता जे यावन्ने तहप्पगारा थिरा भावा सव्वे ते अहम्मत्थिकाये पबत्तंति, ठाणलक्खणेणं अहम्मत्थिकाए।
आगासत्थिकाए णं मंते ? जीवाण-अजीवाण य किं पवत्तइ ? गोयमा ! आगासत्थिकाएणं--जीवदव्वाण य अजीवदव्वाण य भायणभूए-"
__एगेण वि से पुन्ने, दोहिवि पुन्ने सयंपि माएज्जा।
कोडिसएण वि पुन्ने, कोडिसहस्संवि माएज्जा-॥१॥ इति "धर्मास्तिकायानां भदन्त ! जीवानां किं प्रवर्तते ? गौतम!" धर्मास्तिकायः खलु जीवानाम् आगमन-गमन-भाषण-मनोयोगा-वचोयोगा:-काययोगाः ये चाऽप्यन्ये तथाप्रकाराश्चला भावाः सर्वे ते धर्मास्तिकाये प्रवर्तन्ते, गतिलक्षणः खलु धर्मास्तिकायः, अधर्मास्तिकाये खलु जीवानां किं प्रवर्तते ? अधर्म ही असाधारण कारण हैं । एक कार्य अनेक कारणों द्वारा साध्य होता है, अतएव गति और स्थिति के लिए धर्म और अधर्म द्रव्य को स्वीकार करना परमावश्यक है। शंका धर्म और अधर्मद्रव्य का शशक शृङ्ग के समान अनुपलब्ध होने से सद्भाव ही नहीं है।
समाधान-ऐसा होता तो सभी प्रतिवादियों को विवाद ही न रहता। सभी प्रतिवादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पदार्थों को स्वीकार करते हैं । इसके अतिरिक्त आपका हेतु हमारे लिए असिद्ध है । सर्वज्ञ केवली अपने सर्वश्रेष्ठ केवल ज्ञान रूपी नेत्रों से धर्म अधर्म आदि सभो द्रव्यों को उपलब्ध करने-जानते हैं। उनके उपदेश से श्रुतज्ञानी भी उन्हें जान सकते हैं ।
भगवतीसूत्र के १३ वें शतक, उद्देशक और में कहा है-- प्रश्न-भगवन् ! धर्मास्तिकाय से जीवों का क्या प्रवृत्त होता है ?
उत्तर--गौतम ! धर्मास्तिकाय से जीवों के आगमन, गमन, भाषण, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, तथा इसी प्रकार के जो अन्य चलभाव हैं, वे सब धर्मास्तिकाय से प्रवृत्त, होते है, क्योंकि धर्मास्तिकाय गति लक्षण वाले है।
प्रश्न--भगवन् ! अधर्मास्तिकाय से जीवों का क्या प्रवृत्त होता है ? ३०