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दीपिकानियुक्तिश्च अ. २ सू० २०
पुद्गलानां परेमाणनिरूपणम् २६७ ४ अनुतटभेदस्तु-वंशेक्षुदण्डत्वगुप्ताटनादिकलक्षणोऽवगन्तव्यः-५ एते सर्वेऽपि भेदाः पौदगलिका भवन्ति प्रागुक्तयुक्तेः । एवं तमश्छायाऽऽतपोद्योताश्च पुद्गलद्रव्यपरिणामजन्या भवन्ति । .
तथाहि-तमस्तावदन्धकारः पुद्गलद्रव्यस्यैव परिणामो बोध्यः, दृष्टिप्रतिबन्धकत्वात्-- कुड्यादिवत्, आवरकत्वात्-पटादिवत् । छायाऽपि तावत्-पुद्गलपरिणामात्मिका भवति, उदकवाटवादिवत्-शिशिरत्वात् , आप्यायकत्वाच्च । एवमातपोऽपि-पुद्गलद्रव्यपरिणामो भवति, अग्न्यादिवत् , तापकत्वात्-स्वेदजनकत्वात्-उष्णत्वाच्च । एवम्-उद्द्योतश्चापि चन्द्रिकादेः प्रकाश विशेषस्वरूपः पुद्गलद्रव्यपरिणामो बोध्यः जलादिवदाह्लादकत्वात्-अग्न्यादिवत् प्रकाशमयत्वाच्च ।
___ एवं पद्मराग-नीलमणि-हीरकोपलादीनामुद्योतोऽपि पुद्गलद्रव्यपरिणामोऽनसेयः, जलादिवदनुष्णशीतत्वात् तस्मात्-तमश्छायादिमूर्तद्रव्यविकारत्वात्पौद्गलिकः । अथा--ऽन्धकारात्मकस्य तमसो द्रव्यगुणकर्मनिष्पत्तिवैधात् न तत् पुद्गलद्रव्यपरिणामः । अपितु-भावाभावात्मकमेव । यदि च-तमो द्रव्यं स्यात् , तदा-ऽनित्यत्वाद् घटादिद्रव्यवन्निष्पद्येत, यतश्च-द्रव्यवनिष्पद्यमानत्वाऽभावात् , अमूर्तत्वात् , स्पर्शरहितत्वात् , प्रकाशविरुद्धत्वात् , परमाणुभिरकृतत्वाच्च न तमः पुद्गलद्रव्यपरिणामः ।।
चीरी जाने वाली लकड़ी आदि में औत्करिक भेद होता है । किसी वस्तु का चूराचूरा हो जाना चौणिक भेद है मृत्पिड की तरह खंड-खंड होना खण्डभेद है, अभ्रक (मोडल) या भोजपत्र आदि के समान तह के तह अलग-अलग होना प्रतर भेद है । बांस या ईक्ख के समान किसी के छिलके अलग हो जाना अनुत्तर भेद है । पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार ये सभी भेद पौद्ग लिक हैं । इसी प्रकार अन्धकार, छाया, आलप और उद्योत भी पुद्गलद्रव्य के ही परिणाम हैं।
अन्धकार पुद्गल का ही परिणाम है, क्योंकि वह देखने में रुकावट डालता है, जैसे दिवाल, अथवा आवरणकर्ता होने के कारण वह पट आदि के समान पौद्गलिक है । छाया भी पुद्गल का परिणाम है, क्योंकि वह शीतल और तृप्तिजनक होती है, जैसे जल और वायु । इसी प्रकार आतप भी संतापजनक होने से, स्वेदजनक होने से और उप्ण होने से अग्नि आदि के समान पौगलिक है । इसी प्रकार चन्द्रिका आदि का प्रकाशरूप उद्योत भी पुद्गलद्रव्य का परिणाम है, क्योंकि वह आह्लादक होता है, जैसे जल आदि अथवा वह प्रकाश मय होता है, जैसे अग्नि आदि ।
इसी प्रकार पद्मराग, नीलम हीरा आदि मणियों का उद्योत भी पुद्गलद्रव्य की ही पर्याय है, क्योंकि वह अनुष्ण-अशीत (न गरम, न शीतल) होता है. जैसे जलादि । इस प्रकार अन्धकार और छाया आदि मूर्त द्रव्य का कार्य होने से पौद्गलिक है ।।
शंका-अंधकार पौद्गलिक नहीं है, क्योंकि वह द्रव्य गुण और कर्म से विलक्षण है । वह भावाभाव रूप है । अन्धकार अगर द्रव्य होता तो अनित्य होने के कारण घट आदि के समान उसकी उत्पत्ति होनी चाहिए थी, मगर द्रव्य के समान उत्पन्न नहीं होने के कारण,