________________
३१०
तत्वार्थस्त्रे एवं क्रमेण त्र्यणुकस्कन्धोऽपि यणुकस्य परमाणोश्च विमात्रस्निग्धरूक्षस्य परस्परसंश्लेषलक्षणे. तथाविधे बन्धे संजायते । एवं-संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तप्रदेशस्कन्धा अपि निष्पद्यन्ते । तत्र-स्नेहः एक-द्वि-त्रि-चतुःसंख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तगुणभेदादनेकविधो बोध्यः । एवम्-रूक्षोऽपि एक-द्वि-त्रिचतुःसंख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तगुणभेदादनेकविधोऽवगन्तव्यः ।।
____ यथा जलाऽजागोमहिष्णुष्ट्री-आविक्षीरघृतेषु स्नेहगुणः प्रकर्षाऽप्रकर्षण प्रवर्तते, एवं-पांशुधूलिरजः कणिकाशर्करादिषु रूक्षगुणश्च प्रकर्षाऽप्रकर्षेण दृष्टिगोचरो भवति । एवम् – परमाणुष्वपि स्निग्धरूक्षगुणयोः स्थितिः प्रकर्षाऽप्रकर्षेणाऽनुमीयते । उक्तञ्च-प्रज्ञापनायां १३ पदे १९५ सूत्रे___ "बंधपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तंजहाणिद्धवंधणपरिणामे लुक्खवंधणपरिणामे य,
"समणिद्धयाए बंधो, न होइ समलुक्खयाए वि ण होइ । वेमयणिद्धलुक्खत्तणेण बंधो उ खंधाणं - ॥१॥ "णिद्धस्स णि ण दुयाहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं । णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो वा ॥२॥ इति ।
बन्धपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथास्निग्धबन्धपरिणामः रूक्षबन्धपरिणामश्च ।
इसी प्रकार क्रम से त्र्यणुक स्कंध भी, व्यणुक और परमाणु का, जो विसदृश मात्रा में स्निग्ध और रूक्ष हों, परस्पर में संश्लेष होने पर उत्पन्न होता है ।
स्नेह किसी पुद्गल में एक गुण (अंश) वाला, किसी में दो अंश वाला, किसी में तीन अंश वाला, किसी में चार अंश वाला, किसी में संख्यात असंख्यात अनन्त अंश वाला समझना चाहिए । इसी प्रकार किसी पुद्गल में रूक्षता एक गुण, किसी में दो गुण यावत् किसी में अनन्त गुण होती है। जैसे जल, बकरी के दूध, गाय के दूध, भैंस के दूध, ऊंटनी के दूध और भेड़ के दूध में तथा घृत में स्निग्धता गुण की न्यूनाधिकता रहती है और पांशु, धूल, रजकण एवं शर्करा आदि में रूक्षता गुण हीनाधिक रूप में दिखाई देता है, इसी प्रकार परमाणुओं में भी स्निग्धता और रूक्षता गुण के प्रकर्ष और अप्रकर्ष का अनुमान किया जाता है । प्रज्ञापनासूत्र के १३ वें पद के १८५ वें सूत्र में कहा है
प्रश्न-भगवन् ! बन्धनपरिणाम कितने प्रकार का कहा है ? उत्तर-गौतम !दो प्रकार का कहा है, यथा-स्निग्धबन्धन परिणाम और रूक्षबन्धन परिणाम ।
'समान स्निग्धता से और समान रूक्षता से बन्धन नहीं होता; किन्तु स्निग्धता और रूक्षता जब विसदृश परिमाण में होती है. तभी स्कंधों का बन्ध होता है ।