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तत्त्वार्थसूत्रे , मूलसूत्रम्-दवस्सिया निग्गुणा गुणा-" ॥३०॥
छाया-'द्रव्याश्रिता निर्गुणा गुणाः--" ॥१॥
तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे गुणपर्यायाश्रयो द्रव्यमित्युक्तम् , तत्र-के तावद् गुणा इत्याकाक्षायामाह "दव्वस्सिया निग्गुणा गुणा-"इति। द्रव्याश्रिताः द्रव्यम् आश्रिताः द्रव्याश्रिताः निर्गुणाः-गुणेभ्यो निष्क्रान्ताः निर्गताः गुणरहिताश्च गुणा व्यपदिश्यन्ते । तत्र-निर्गुणा इतिकथनेन ब्यणुकादिपुद्गलस्कन्धद्रव्याणां व्यावृत्तिर्भवति,
तदकथने-द्वयणुकादीनां परमाण्वादिद्रव्याश्रितत्वेन गुणत्वापत्तिः स्यात् । निर्गुत्वविशेषणत्वे तु-तेषां द्वयणुकादीनां रूपादिगुणवत्त्वेन निर्गुणत्वाऽभावात् नातिव्याप्तिस्तेषु । तथाच-द्रव्याश्रितत्वेसति निर्गुणत्वे सति गुणत्वं गुणानां लक्षणं पर्यवसितम् , क्रियाया द्रव्याश्रितत्त्वनिर्गुणत्वयोः सत्त्वेऽपि गुणत्वाभावान्न तत्रातिव्याप्तिरिति भावः ॥३०॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व गुणपर्यायपरिणामिद्रव्यमित्युक्तम्, तत्र-कीदृशाः खलु गुणा भवन्ति. यैस्तद्र्व्यं गुणवदिति व्यपदिश्यते ? इति जिज्ञासायामुच्यते-"दस्सिया निग्गुणा गुणा-" गुण है। मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जीव द्रव्य के पर्याय हैं । और मतिज्ञान आदि चैतन्य गुण के पर्याय हैं । इस प्रकार जो द्रव्य के आश्रित हो वह गुण और जो द्रव्य तथा गुण दोनों के आश्रित हो उसे पर्याय कहते हैं ॥२९॥
मलमूत्रार्थ--"दव्वस्सिया निग्गुणा' इत्यादि-सूत्र ॥३०॥ जो द्रव्य के आश्रित हों, स्वयं निर्गण हों, वे गुण हैं ॥३०॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में कहा गया है कि गुण और पर्याय का आश्रय द्रव्य कहलाता है; मगर गुण किसे कहते हैं ? इस प्रकार की जिज्ञासा होने पर उसका समाधान करते हैं
जो द्रव्य में रहते हों और गुणों से रहित हों, वे गुण कहलाते हैं । यहाँ 'निर्गुणा' ऐसा कहने से द्वचणुक आदि पुद्गलस्कन्धों की व्यावृत्ति हो जाती है । अगर निर्गुणः विशेषण का प्रयोग न किया होता तो घणुक आदि परमाणु द्रव्यों के आश्रित होने से गुण कहलाने लगते । किन्तु द्यणुक आदि में रूपादि गुणों का अस्तित्व है, वे निर्गुण नहीं हैं, अतएव गुण का उक्त लक्षण उनमें घटित नहीं होता । इस कारण लक्षण में अतिव्याप्ति दोष भी नहीं आता है । इससे यह फलित हुआ कि जो द्रव्य के आश्रित हो, स्वयं निर्गुण हो और जिसमें गुणत्व पाया जाय वही गुण है। क्रिया यद्यपि द्रव्याश्रित होती है, निर्गुण भी होती है मगर उसमें गुणत्व का अभाव होने से अतिव्याप्ति दोष नहीं आता ॥३०॥
तत्वार्थनियुक्ति-पहले कहा जा चुका है कि द्रव्य, गुण और पर्याय का आधार होता है, किन्तु गुण कैसे होते हैं, जिनके कारण द्रव्य गुणवान् कहा जाता है ! इस प्रकार की जिज्ञासा का समाधान करने के लिए कहा गया है