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दीपिकनियुक्तिश्च अ० २ सू. ३०
गुणस्वरूपनिरूपणम् ३२७ इति । द्रव्याश्रिताः निर्गुणाः गुणाः इति, द्रव्यमाश्रिताः, द्रव्यपरिणामा इत्यर्थः । द्रव्यवर्तिनः, निर्गुणाः-गुणेभ्यो निष्क्रान्ता निर्गताइति निर्गुणाः, गुणशून्याश्च गुणा भवन्तीति भावः । एवञ्चस्थित्यंशो ध्रौव्यरूपं द्रव्यम् आश्रयः- परिणामिकारणं येषां परिणाम विशेषणां गुणानां ते द्रव्याश्रिताः गुणरहिताश्च गुणा व्यपदिश्यन्ते ।
___ तत्र-द्रव्यस्य गुणानाञ्च परस्परं परिणामि-परिणामभावलक्षणआश्रयाश्रयिभावोऽत्र विविक्षितः तत्र-परिणामिद्रव्यम्, परिणामा गुणाः, नत्वाधाराधेयभावलक्षण आश्रयाश्रयिभावः । कुण्ड-बदरादिवत् द्रव्यगुणानामेकान्ततो भिन्नत्वाभावेनाऽऽधाराधेयभावानुपपत्तेः, नापि-द्रव्यगुणानां पराभिमतसमवाय लक्षणः सम्बन्धोपि युक्तः ।।
तेषा समवायसम्बन्धाभ्युपगमे समवायस्य गुणानाञ्च कश्चित्सम्बन्धः स्वीकर्तव्यः । तत्रयदि-अपरः समवाय एव सम्बन्धः कल्प्यते, तदा-तस्यापि अपरेण समवायेन भवितव्यमित्यनवस्थादोषः समापतति । यदि पुनः सम्बन्धान्तरमभ्युपगम्यते, तदाऽऽगमविरोधापत्तिः । तथाहिसमवायिनो द्रव्यगुणयोयेदि समवायाख्यः सम्बन्धो वर्तते, तदा-स समवायः किं संयोगवृत्त्या समवायवृत्त्या वा वर्तेत ? तत्र-न तावत् संयोगवृत्त्या वक्तुं शक्यते, अद्रव्यत्वाद् गुणानाम् द्रव्यविषय एव संयोगोऽभ्युपगतः, नतु-द्रव्यगुणविषयोऽपि । यदिच-समवायवृत्त्या तत्र-समवाय
जो द्रव्य के आश्रित हों और स्वयं निर्गुण हों, उन्हें गुण कहते हैं। जो द्रव्य के आश्रित हो अर्थात् द्रव्य के परिणाम हों या द्रव्यवर्ती हों, गुणों से रहित हों--निर्गुण-गुणशून्य हों वे गुण कहलाते हैं।
यहाँ द्रव्य और गुणों का जो आश्रय-आश्रयिभाव कहा गया है वह परिणामि-परिणामाभाव समझना चाहिए । द्रव्य परिणामी है और गुण परिणाम है । आधाराधेय भाव यहाँ विवक्षित नहीं है, क्योंकि जैसे कूडा और बोर-दोनों की सत्ता पृथक् पृथक् है, उस तरह द्रव्य और गुण भिन्न-भिन्न नहीं हैं । अतएव द्रव्य को आधार और गुण को आधेय नहीं कहा जा सकता। ____ अन्य मतानुयायियों ने द्रव्य और गुण में समवाय संबंध का स्वीकार किया है; वह भी ठीक नहीं है। यदि गुणों का द्रव्य के साथ समवाय संबंध माना जाय तो समवाय और गुणों में भी कोई संबंध मानना पड़ेगा । उस समवाय का भी फिर दूसरा समवाय संबन्ध माना जाय तो अनवस्था दोष आता है । दूसरा समवाय मानने में आगम से विरोध आता है।
समवायी द्रव्य और गुण में यदि समवाय नामक संबंध है तो वह समवाय किस सम्बन्ध से उनमें रहता है-संयोग संबंध से अथवा समवाय संबंध से ? संयोग संबंध तो माना नहीं जा सकता क्योंकि संयोग दो द्रव्यों का ही होता है। यहाँ गुण द्रव्यरूप नहीं है। अगर समवाय समवाय, संबंध से रहता है तो यह दूसरा समवाय भी तीसरे सम