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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० २ सू. २०
परमाणुपुद्गलानामुत्पत्तिहेतुकथनम् २७७
संघातेनाऽन्यतः संघाताद् भेदेनेत्येवं द्व्यणुकः उत्पद्यते इति भावः । परमाणुस्तु - पुद्गलानां भेदलक्षणात् पृथक्त्वादेवोत्पद्यते, न तु संघातलक्षणादेकत्वात् नापि संघात भेदलक्षणादेकत्व पृथक्त्वाद्वा परमाणुरुत्पद्यते इति भावः ।
अत्रेदं बोध्यम् — द्वयोः परमाण्वोः संघातरूपाऽन्योन्याश्लेषपरिणामलक्षणादेकत्वाद व्यणुकस्कन्धः सम्पद्यते । उक्तञ्च स्थानांगसूत्रे २स्थाने ३ उद्देशके ८२ सूत्रे - “ दोहिं ठाणेहिं पोग्गलासाहन्नति, तंजहा - सईंवा पोग्गला साहन्नति परेण वा पोग्गला साहन्नति, सईबा पोग्गला भिज्जंति परेण वा पोग्गला भिज्जंति – ”
छाया -- द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पुद्गलाः संहन्यन्ते, तद्यथा--- स्वयं वा पुद्गलाः संहन्यन्ते परेण वा पुद्गलाः संहन्यन्ते, स्वयं वा - पुद्गला भिद्यन्ते परेण वा - पुद्गला भिद्यन्ते इति ।
उत्तराध्ययने ३६ अध्ययने ११ गाथाया - मुक्तञ्च - एगत्तेण पुहुत्तेण खंधा य परमाणुय - " इति, एकत्वेन - पृथक्त्वेन स्कन्धाश्च - परमाणवश्व, इति । अथ - निरवयोर्द्वयोः परमाण्वोः संहतौ सत्य कथं द्व्यणुक स्कन्धो निष्पद्यते : तथाहि - तयोर्द्वयोः परमाण्वोः संश्लेषः किं परस्परेण सर्वात्मना भवेत् ? एकदेशेन वा ।
तत्र - यदि सर्वात्मना संश्लेषोऽभ्युपगम्यते, तदा-- निखिलमपि जगद् एकपरमाणुमात्रं स्यात् । यदि तु - एकदेशेन संश्लेष उच्यते, तदा- परमाणुः सावयवः प्रसज्येत, तस्य एकदेशत्वे सावयवत्वहैं । काल के सबसे छोटे निरंश अंश को समय कहते हैं । उस एक ही समय में कोई परमाणु किसी द्व्यणुक से पृथक् हुआ और उसी समय में दूसरा कोई परमाणु उसमें मिल गया तो इस भेद और संघात से भी द्व्यणुक स्कंध की उत्पत्ति हुई ।
मगर परमाणु की उत्पत्ति संघात से या भेद संघात से नहीं किन्तु भेद से ही होती है ।
यहां यह समझ लेना चाहिए - दो परमाणुओं के पारस्परिक मिलन रूप एकत्व परिणाम से एक द्रव्याणुकस्कन्ध बन जाता है । स्थानांगसूत्र के दूसरे स्थान के तीसरे उद्देशक के ८२ वें सूत्र में कहा है- दो कारणों से पुद्गलों का संघात (मिलन) होता है या तो पुद्गगल स्वयं ही संहत | जाते हैं या दूसरे के द्वारा संहत किये जाते हैं । इसी प्रकार पुद्गलों में दो प्रकार से भेद (पृथक्त्व) उपन्न होता है -- या तो वे स्वयं ही पृथक् हो जाते हैं या दूसरे के द्वारा पृथक किये जाते हैं ।
उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन की ११ वीं गाथा में कहा है-- एकत्व और पृथक्त्व के कारण स्कंध और परमाणु उपन्न होते हैं ।
शंका- निरंश दो परमाणुओं के एकत्व से द्वणुक स्कंध की निष्पत्ति किस सकती है ? उन दो परमाणुओं का संयोग सर्वात्मना अर्थात् एक परमाणु में दूसरे पूर्ण रूप में समाजाने से होता है अथवा एक देश से होता है ?
यदि सर्वात्मना संयोग माना जाय तो सारा ही जगत् एक परमाणु मात्र ही होगा क्योंकि एक परमाणु जब दूसरा परमाणु पूरी तरह समा गया तो दो परमाणुओं के मिल
प्रकार हो
परमाणु के