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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० २ सू. २३
स्कंधस्य चाक्षुषप्रत्यक्षत्वनिरूपणम् २८५
प्रत्यक्षविषयो भवति, कश्चित्तु न चाक्षुषप्रत्यक्षविषयः । तत्र - योऽचाक्षुषः स कथं चाक्षुषः सम्पद्यते ? इत्याशङ्कामपाकर्तुमाह—“एगत्तपुहुत्तेहिं चक्खुसा - " इति ।
एकत्वपृथकत्वाभ्यां भेदसंघातलक्षणाभ्यां स्कन्धाश्चाक्षुषा:- चाक्षुषप्रत्यक्षगोचरा भवन्ति, न तु भेदाच्चाक्षुषा भवन्ति । अचाक्षुषाः पुनः पूर्वोक्तात् संघातात्, भेदात्-संघातभेदाच्च, उपजायन्ते ॥ २३ तत्त्वार्थनिर्युक्तिः —– भेदसंघाताभ्यां पृथकत्वैकत्वलक्षणाभ्यां चाक्षुषाः चक्षुःप्रत्यक्षविषयाः स्कन्धा उत्पद्यन्ते तथाच प्रयोगवित्र साजनितात् सांगत्या - आयत्या स्कन्धनात् स्कन्धाश्चाक्षुषा:चाक्षुषप्रत्यक्षगोचरा उत्पद्यन्ते, न तु - भेदसंघाताभ्यामुत्पन्नाः सर्वे चाक्षुषा एव भवन्ति अचाक्षुषा - णामपि स्कन्धानां भेदसंघाताभ्यां पृथक्त्वैकत्वलक्षणाभ्यामुत्पत्ति दर्शनात् । तस्मात् स्वत एव परिणति विशेषात् - चाक्षुषप्रत्यक्षविषयतापरिणतिशालिनो बादराः स्कन्धाः संघात भेदाभ्यामुत्पद्यन्ते इति नियमः ।
एवञ्च न सर्व एव संघातश्चक्षुषा ग्राह्यो भवति, अपि तु - अनन्तानन्तपरमाणुसंघातनिष्पाद्योऽपि पुद्गलस्कन्धो बादरपरिणतिशाल्येव लोचनगोंचरतामुपैति न तु सूक्ष्मपरिणतिशाली सूक्ष्मपरिणामोपरतौ बादरपरिणामे भवति । बादरपरिणामे च यथा परमाणवः संहता भवन्ति, तथा केचन भिद्यन्तेऽपि । तस्मात् संघात भेदाभ्यामेव चाक्षुषाः स्कन्धा निष्पद्यन्ते, न संघातादेव नाऽपि भेदादेव । यतोहि - सूक्ष्मपरिणामस्य भेदे सत्यपि सूक्ष्मत्वापरित्यागादचाक्षुषत्वमेव ।
के द्वारा ग्राह्य होता है और कोई नहीं होता ऐसी स्थिति में जो चक्षुग्राह्य नहीं है, वह चक्षुग्राह्य कैसे हो जाता है ? इस शंका का समाधान करने के लिए कहते हैं
एकत्व अर्थात् संघात और पृथक्त्व अर्थात् भेद से स्कंध चाक्षुष प्रत्यक्ष के विषय बन जाते हैं, भेद से चाक्षुष नहीं होते है । अचाक्षुष पूर्वोक्त संघात से, भेद से और संघात - भेद से होते हैं ॥२३॥
तत्त्वार्थनिर्युक्ति-भेद और संघात से चक्षु इन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य स्कंध उत्पन्न होते हैं । ऐसा नहीं समझना चाहिए कि भेद और संघात से उत्पन्न होने वाले सभी स्कंध चाक्षुष ही होते हैं । भेद और संघात से तो अचाक्षुष स्कंधों की भी उत्पत्ति देखी जाती है । अतएव नियम यह है कि स्वतः ही परिणमन को विशिष्टता के कारण चक्षुइन्द्रिय के गोचर होने वाले बादर स्कंध संघात और भेद के द्वारा उत्पन्न होते हैं ।
इस प्रकार सभी स्कंध चक्षुग्राह्य नहीं होते, किन्तु अनन्तानन्त परमाणुओं के संघात से बनने वाला पुद्गलस्कंध भी यदि बादर परिणाम वाला होता है तो ही वह नेत्रगोचर हो सकता है, सूक्ष्म परिणाम वाला नहीं । बादरपरिणाम तब उत्पन्न होता है । जब सूक्ष्म परिणाम हट जाता है । बादर परिणाम होने पर जैसे कुछ परमाणु उसमें मिलते हैं; उसी प्रकार कुछ अलग भी होते हैं । इस कारण संघात और भेद के द्वारा ही चाक्षुष कंधों की निष्पत्ति होती है, न अकेले संघात से और न अकेले भेद से । सूक्ष्म परिणाम वाले