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तत्त्वार्थस्त्रे अथ सोपक्रमायुषामनशनव्याधिप्रभृतिबाधाभिरूपक्षीणायुषाम-अपवर्तनीयायुषाञ्च भृगुपतनोबन्धनादिभिरपवर्तनायुषां जीवानां पुद्गला उपकारका भवन्तु ताबत् किन्तु-अपवर्तनीयाऽऽयुषा मौसमतिकचरमशरीरोत्तमपुरुषाऽसंख्येयवर्षायुषां कथं मरणोपकारकाः पुद्गलाः स्युरिति चेत्-१ शृणु.
तेषामपि-अपवर्तनीयायुषां जीवितोपग्रहोमरणोपग्रहश्च पुद्गलाधीन एव । न चा-ऽनपवर्तनीबायुषां जीवानामायुषोवर्धयितुं-हासयितुञ्चाऽशकयत्वात् कथं पुद्गलकृतस्तेषां जीवितमरणोपग्रह इति वाच्यम्, पौद्गलिकस्यायुः कर्मणः स्थितिक्षयाभ्यामेव जीवितमरणयोः सम्भवात् ।।
तथाचा--ऽनपवर्तनीयायुषामपि नायुःकर्मविना जीवितं भवति, न चायुः कर्मक्षयमन्तरा मरणं सम्भवति इति-अनपवर्तनीयायुषामपि जीवितमरणे पुद्गलाधीने एवेति भावः उक्तञ्च व्याख्याप्रज्ञप्तौ १३ शतके ४ उद्देशके
"पोग्गलत्थिकाए णं पुच्छा-? गोयमा ! पोग्गलत्थिकाए णं जीवाणं ओरालियवेउब्वियआहारयतेयाकम्मय सोइंदियचक्खंदियघाणिदियजिभिदिय फासिदियमणजोगवयजोगकायजोग आणापाणणं च गहणं पवत्तइ' गहणलक्खणेणं पोग्गलत्थिकाए-.'' इति । पुद्गलास्तिकाये खलु पृच्छा ? गौतम ! पुद्गलास्तिकायः खलु जीवानाम् औदारिक
शंका- जो जीव सोपक्रम आयु वाले हैं, अनशन या रोग आदि के कारण जिनकी आयु क्षीण हो जाती है, जिनकी आयु अपवर्तनीय है, ऐसे जीवों के लिए पुद्गल उपग्रह• कारक भले हों किन्तु अनपवर्तनीय आयु वाले औपपातिक अर्थात् देवों और नारकों, चरम
शरीर धारियों, उत्तम पुरुषों तथा असंख्यात वर्ष की आयु वालों के लिए पुद्गल मरणो• पकारक कैसे हो सकते हैं ?
समाधान-सुनिए, चाहे कोई अपवर्तनीय आयु वाला हो, चाहे अनपवर्तनीय वाला; सब का जीवन और मरण पुद्गलों के ही अधीन है । अनपवर्तनीय आयु वाले जीवों की आयु को न कोई बढ़ा सकता है और न घटा सकता है, ऐसी स्थिति में उनके जीवन 'और मरण को पुद्गल कृत उपग्रह कैसे कहा जा सकता है ? इसका उत्तर यह है कि पौद्गलिक आयु कर्म जब तक बना रहता है तब तक जीवन रहता है और जब उसका क्षय हो जाता है तो मरण होता है। इस प्रकार सभी जीवों का जीवन--मरण पुद्गलों के अधीन है।
अनपवर्तनीय आयु वालों का जीवन भी आयु कर्म के बिना मरण नहीं टिक सकता और आयु कर्म के क्षय के बिना मरण नहीं हो सकता । इस कारण अनपवर्तनीय आयु वालों का जीवन-मरण भी पुद्गल के अधीन है। भगवतीसूत्र के शतक १३ उद्देशक ४ में कहा है
प्रश्न--पुद्गलास्तिकाय के विषय में पृच्छा ? उत्तर-गौतम ! पुद्गलास्तिकाय के निमित्त से जीवों के औदारिक, वैक्रिय, आहा