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दीपिकनियुक्तिश्च अ० १ सू. ४०
गर्भजपञ्चेन्द्रियतिरश्चां त्रिवेदत्वम् १६९ मूलसूत्रम्- "सेसा ति वेया"-॥४०॥ छाया—"शेषा स्त्रिवेदाः-" ॥४०
तत्त्वार्थदीपिका - "पूर्वसूत्रे नारकाणां सम्मूछिमानाञ्च जीवानां केबलं नपुंसकत्ववेद एव भवतीति प्रतिपादितम् । सम्प्रति-तेभ्यो नारकसम्मूछिमेभ्योऽतिरिक्तानां गर्भव्युत्क्रान्तिकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्याणां त्रिवेदत्वं प्रतिपादयितुमाह- "सेसा तिवेया" इति ।
शेषाः नारकसम्मूछिमभिन्नाः गर्भव्युत्क्रान्तिकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः मनुष्याश्च त्रिवेदाः, त्रयो वेदाः । पुंस्त्वस्त्रीत्वनपुंसकत्वलक्षणा येषां ते त्रिवेदास्तथाविधा भवन्ति । एवञ्चगर्भव्युत्क्रान्तिकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिजा मनुष्याश्च केचन-पुंस्त्ववेदिनः केचन-स्त्रीत्ववेदिनः केचन पुनर्नपुंसकत्ववेदिन च भवन्ति ॥४०॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः-शेषाः नैरयिक-सम्मूर्छिमभिन्ना गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकास्त्रिवेदाः स्त्रीवेदवेदिनः पुरुषवेदवेदिनो नपुंसकवेददेदिनश्च भवन्ति ।
तथाच--जरायुजाण्डजपोतजा स्त्रिविधा भवन्ति । स्त्रियः पुमांसो नपुंसकानि चेति फलितम् । उक्तञ्च समवायाङ्गसूत्रे-“गमवक्कंतिग्रम शुस्मा पंचिंदियविरिया य विवेया"इति । गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाश्च त्रिवेदाः इति ॥४०॥
मूलसूत्रम् “आऊ दुविहे, सोवक्कमे निरुवक्कमे य-" ॥४१॥ छाया-"आयुर्द्विविधम्. सोपक्रम निरुपक्रमं च॥४॥ मूलसूत्रार्थ-- "सोसा तिवेया" सू० ४० शेष जीव तीनों वेद वाले होते हैं ॥४०॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि नारक और संमर्छिम जीव सिर्फ नपुंसकवेद वाले ही होते हैं । अब उनके अतिरिक्त अर्थात् नारकों और संमूर्लिमों के सिवाय जो गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य हैं, वे तीनों वेदों वाले होते हैं, पर प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं
शेष जीव अर्थात् नारकों और संमूर्छिमों से भिन्न गर्भजन्म से उत्पन्न होने वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य तीनों वेदों वाले होते हैं । जिन जीवों में पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद तीनों पाये जाएँ, वे तीनवेद वाले होते हैं । इस प्रकार गर्भज पंचेन्द्रिय तियचों और मनुष्यों में कोई पुरुषवेदी, कोई स्त्रीवेदी और कोई नपुंसकवेदी होते हैं ।।४०॥
तत्त्वार्थ नियुक्ति-शेष अर्थात् नारकों और सम्मूर्छिमों से भिन्न गर्भज मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच त्रिवेदी होते हैं अर्थात् उनमें स्त्रियाँ भी होती हैं, पुरुष भी होते हैं और नपुंसक भी होते हैं।
इस कथन का फलितार्थ यह है कि जरायुज, अण्डज और पोतज प्राणी तीनों प्रकार के होते हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । समवायांग सूत्र में कहा है गर्भ से उत्पन्न होने वाले मनुष्य और पंचेन्द्रिय तियेच तीनों वेदों वाले होते हैं ॥४०॥
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