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तत्त्वार्थसूत्र __तत्वार्थदीपिका-पूर्व लोकस्योक्तत्वात् तच्छब्दार्थमाह "धम्माधम्मे' ति धर्मःअधर्मः-आकाशः --कालः-पुद्गलः--जीवश्चेत्येते लोकपदेन व्यपदिश्यन्ते, तथाच- जीवाजीवाधारक्षेत्रं लोक इत्युच्यते । लोक्यन्ते धर्मादयः पदार्था यत्र स लोक इतिव्युत्पत्तेः ॥९॥ ____ तत्वार्थनियुक्तिः- “धर्माधर्मलोकाकाशैकजीवानामसंख्येयाः प्रदेशाः-' इत्यत्र षष्ठसूत्रे लोकपदोपादानात् तदर्थ प्ररूपयितुमाह-"धम्माधम्मागासकालपोग्गलजीवा लोगो-"इति धर्माऽधर्माऽऽकाशकालपुद्गलजीवा इत्येते षट् लोकपदेन व्यवहियन्ते ।।
उक्तञ्चोत्तराध्ययनसूत्रेऽष्टाविंशत्यध्ययने गाथा-"धम्मो अधम्मो आगास कायो पुग्गल जंतवो एस लोगोत्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं--" ॥७॥ एवञ्च-जीवानाम् अजीवानाञ्च धर्माधर्माकाशकालपुद्गलात्मकानाम् आधारक्षेत्रं लोक इति फलितम् । ततः परम् अलोको भवति, तथाच लोके एव जीवाजीवादिकं तिष्ठति, नाऽलोके किमपि वस्तुतिष्ठति तस्याऽलोकस्य शून्यत्वादिति भावः ॥९॥
मूलसूत्रम् -- "ओगाहो लोगागासे' नो अलोगागासे" ॥१०॥ छाया- अवगाहो लोकाकाशे. नो अलोकाकाशे -" ॥१०॥
तत्वार्थदीपिका-- पहले लोक का कथन किया है, अतः उसका अर्थ कहते हैं-धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और 'जीव, यह लोक एक के द्वारा कहे जाते हैं । जीव-अजीव का आधारक्षेत्र लोक कहलाता है, क्योकिं जहाँ धर्म आदि पदार्थ लोक किये जाएँ अर्थात् देखे जाएँ वह लोक, यह लोक शब्द की व्युत्पत्ति है ॥९॥
तत्त्वार्थनियुक्ति-धर्म, अधर्म, लोकाकाश और एक जीव के असंख्यात प्रदेश हैं, इस सूत्र में लोक पद ग्रहण किया है, अतः उसके अर्थ का प्ररूपण करने के लिये कहते हैं--
धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और, जीव ये छहद्रव्य और लोक कहलाते है । .... उत्तराध्ययनसूत्र के २८ वें अध्ययन की गाथा ८ वीं में कहा है-सर्वदर्शी जिनेन्द्रों ने धर्म; अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव को लोक कहा है।
इससे यह फलित होता है कि जीवों का तथा अजीव धर्म, अधर्म, आकाश, काल पुद्गल का जो आधार क्षेत्र है, वह लोक है । लोक से आगे अलोक है । जीव आदि द्रव्य लोक में ही होते हैं, अलोक में आकाश के सिवाय अन्य कोई वस्तु नहीं है । अलोक अन्य द्रव्यों से शून्य है।
.. इस सूत्र से यह भी प्रकट किया गया है कि धर्मादि द्रव्य जहाँ हों वह तो लोक कहलाता ही है, मगर धर्मादि द्रव्य भी लोक कहलाते हैं। इस अर्थ में लोक शब्द की व्युत्पत्ति यों होती है—लोक्यते इति लोकः अर्थात जो देखा जाय वह लोक ॥९॥
"ओगाहो लोगागासे' इत्यादि ॥१०॥ मूलसूत्रार्थ--अवगाह लोकाकाश में होता है, अलोकाकाश में नहीं ॥१०॥