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तत्त्वार्थस्त्रे नपुंसकवेदमोहोदयात् कस्यचित् स्त्रीपुरुषद्वयविषयोऽभिलाषः प्रादुर्भवति, धातुद्वयोदये सति मार्जितादिद्रव्याऽभिलाषवत् । कस्यचित्पुनः पुरुषेष्वेवाऽभिलाषो भवति.सङ्कल्पजविषये चाऽनेकरूपोऽभिलाषो भवति ।
. तथोक्तं समवायाङ्गसूत्रे "कइविहे णं भंते ! वेए पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे बेए पण्णत्ते तं जहा-इत्थीवेए-पुरिसवेए-नपुंसकवेए-इति । कतिविधः खलु भदन्त ! वेदः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! त्रिविधो वेदः प्रज्ञप्तः । तद्यथा-स्त्रीवेदः पुरुषवेदो नपुंसकवेदः इति ॥३७॥
मूलसूत्रम्-'देवे दुवेए, इत्थीवेए पुरिसवेए यछाया-देवो द्विवेदः स्त्रीवेदः पुरुषवेदश्च
तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व तावद् वेदः पुंस्त्व-स्त्रीत्व-नपुंसकत्ववेदभेदेन त्रिविधः प्रतिपादितः सम्प्रति-नैरयिकदेवतिर्यग्योनिकमनुष्यादि गर्भव्युत्क्रान्तिकसम्मूछिमौपपातिकजीवानां मध्ये केषां कियन्तो वेदा भवन्तीति सूत्रत्रयेण प्ररूपयितुं प्रथमं देवानां द्विवेदमाह
"देवे दुवेए, इत्थीवेए-पुरिसवेए य-" इति । देवस्तावत् चतुर्विधोऽपि भवनपतिवानव्यन्तर-वैमानिकरूपो द्विवेदो भवति, द्वौ वेदौ पुंस्त्वं-स्त्रीत्वरूपौ यस्याऽसौ द्विवेदः । तद्यथास्त्रीवेदः पुरुषवेदश्च एवञ्च-चतुर्निकाया अपि देवाः नपुंसकवेदिनो न भवन्ति अपितु-पुंवेदिनः स्त्रीवेदिनश्च । तत्र-केचन पुवेदिनः केचन पुनः स्त्रीवेदवदिनो भवन्ति । तत्र भवनपति-वानव्यन्तरज्योतिष्क-सौधर्मे-शानद्वयवैमानिकेषु उपपातो वेदद्वयमपि भवति ।।
नपुंसकवेद का उदय होने पर किसी-किसी को स्त्री और पुरुष, दोनों की इच्छा उत्पन्न होती है, जैसे वातादि दो धातुओं के कुपित होने पर मार्जित द्रव्य की इच्छा होती है। कसी किसी को पुरुषों के प्रति ही अभिलाषा जाग्रत होती है । संकल्पज विषय में भी अनेक प्रकार की अभिलाषा होती है । समवायांग सूत्र में कहा है
प्रश्न-भगवन् ! वेद कितने प्रकार का कहा है ? उत्तर-गौतम ! वेद तीन प्रकार का कहा है-स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद ॥३७॥ मूलसूत्रार्थ- "देवे दुवेए इत्थीवेए पुरिसवेए" सूत्र ३८
देव दो वेद वाले ही होते हैं-स्त्रीवेद वाले और पुरुषवेद वाले ॥३८॥ 'तत्त्वार्थदीपिका-पहले वेद के तीन भेद बतलाए जा चुके हैं, अब तीन सूत्रों में यह बतलाएँगे कि देव, नारक, तिर्यंच, मनुष्य, गर्भज, सम्मूछिम, एवं औपपातिक जीवों में से किनके कितने वेद होते हैं ? सर्वप्रथम देवों में वेद का प्रतिपादन करते हैं
भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क, और वैमानिक, इन चारों प्रकारों के देवों में दो ही वेद होते हैं-स्त्रीवेद और पुरुषवेद । तात्पर्य यह है कि चारों निकायों के देव नपुंसकवेदी नहीं होते; सिर्फ स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी ही होते हैं । भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा सौधर्म और ऐशान विमान के वैमानिकों में दोनों वेद वालों की उत्पत्ति होती है। जैसे असुर