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अ० १३ / प्र०१
भगवती-आराधना / ५ १२. भगवती-आराधना की 'देसामासियसुत्तं' गाथा (११२३) के 'तालपलंबसुत्तम्मि' पद में श्वेताम्बरग्रन्थ 'बृहत्कल्प' के सूत्र का उल्लेख है।
१३. 'आराधणापुरस्सर' गाथा (७५२) की विजयोदयाटीका में श्वेताम्बरग्रन्थ 'अनुयोगद्वारसूत्र' का निर्देश किया गया है।
१४. उत्तरगुणउज्जमणे' गाथा (११८) की विजयोदयाटीका में 'पंचवदाणिजदीणं' इत्यादि 'आवश्यकसूत्र' (श्वेताम्बरग्रन्थ) की गाथा उद्धृत की गई है।
१५. 'अंगसुदे बहुविधे' गाथा (४९९) की विजयोदयाटीका में श्रुत के 'आचारांग' आदि भेदों का वर्णन है। ये नाम श्वेताम्बरपरम्परा के आगमों के हैं।
डॉ० सागरमल जी ने अपने ग्रन्थ 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ( पृ.१२१, १२९) में ये दो नये हेतु और जोड़े हैं
१६. 'शिवार्य' जैसे आर्यान्त तथा 'जिननन्दी' जैसे नन्द्यन्त नाम यापनीयसम्प्रदाय में ही मिलते हैं।
१७. भगवती-आराधना में श्वेताम्बर-प्रकीर्णक-ग्रन्थों की अनेक गाथाएँ हैं।
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सभी हेतु असत्य या हेत्वाभास इनमें से कुछ हेतुओं का तो अस्तित्व ही नहीं है, अतः वे असत्य हैं और कुछ यापनीयग्रन्थ के लक्षण नहीं हैं, क्योंकि वे अव्याप्ति, अतिव्याप्ति या असम्भवदोष से युक्त हैं, इसलिए वे हेत्वाभास हैं। यापनीयग्रन्थ के लक्षण ‘यापनीयसंघ का इतिहास' नामक सप्तम अध्याय में बतलाये गये हैं। तदनुसार जो श्वेताम्बरग्रन्थ न हो, फिर भी जिसमें सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, परतीर्थिकमुक्ति, केवलिभुक्ति आदि सिद्धान्तों का विधान हो अथवा निषेध न किया गया हो, वह यापनीयग्रन्थ है और जिसमें इनका विधान न हो अथवा निषेध किया गया हो, वह यापनीयग्रन्थ नहीं, बल्कि दिगम्बरग्रन्थ है।
भगवती-आराधना में यापनीयग्रन्थ के ये लक्षण उपलब्ध नहीं होते, अपितु उसमें सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति आदि का निषेध किया गया है, अतः वह यापनीयग्रन्थ नहीं, दिगम्बरग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त कुछ बहिरंग प्रमाणों से भी उसका दिगम्बराचार्यकृत होना सिद्ध होता है। यहाँ पहले इन अन्तरंग और बहिरंग प्रमाणों को प्रस्तुत किया जा रहा है, जिनसे सिद्ध होता है कि भगवती-आराधना दिगम्बर-परम्परा का ग्रन्थ है। तत्पश्चात् यापनीयग्रन्थ मानने के पक्ष में जो हेतु प्रस्तुत किये गये हैं, उनकी असत्यता एवं हेत्वाभासता का प्रदर्शन किया जायेगा।
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