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त्रयोदश अध्याय
भगवती आराधना
प्रथम प्रकरण
भगवती - आराधना के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण
क
यापनीयग्रन्थ मानने के पक्ष में प्रस्तुत हेतु
भगवती - आराधना के कर्त्ता शिवार्य हैं, जैसा कि उन्होंने स्वयं ग्रन्थ के अन्त में कहा है। इसे उन्होंने 'आराधना' और 'भगवती आराधना २ दोनों नामों से अभिहित किया है। आचार्य अमितगति ने 'भगवती - आराधना' नाम का अनुकरण किया है। पं० आशाधर जी ने इसे 'मूलाराधना' नाम से उद्धृत किया है। विद्वानों ने इसका रचनाकाल प्रथम शताब्दी ई० निर्धारित किया है । ३
शिवार्य दिगम्बर - आचार्य थे और 'भगवती - आराधना' दिगम्बरग्रन्थ है। किन्तु पं० नाथूराम जी प्रेमी, श्वेताम्बर मुनि श्री कल्याणविजय जी, प्रो० हीरालाल जी जैन ' डॉ० श्रीमती कुसुम पटोरिया' तथा श्वेताम्बर विद्वान् डॉ० सागरमल जी जैन ने इस
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१. पुव्वायरियणिबद्धा उवजीवित्ता इमा ससत्तीए ।
आराधना सिवज्जेण पाणिदलभोइणा रइदा ॥ २१६० ॥ भगवती आराधना । २. आराधणा भगवदी एवं भत्तीए वण्णिदा संती ।
संघस्स सिवज्जस्स य समाधिवरमुत्तमं देउ ॥ २१६२ ॥ भगवती आराधना । ३. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा / खण्ड २ / पृष्ठ १२७-१२८ ४. जैन साहित्य और इतिहास (प्रथम संस्करण) / पृष्ठ ५६-६० ।
५. मुनि कल्याणविजय जी एवं प्रो. हीरालाल जी जैन ने भगवती आराधना के कर्त्ता शिवार्य एवं बोटिक सम्प्रदाय के संस्थापक शिवभूति को एक ही व्यक्ति माना है । उनके अनुसार यह सम्प्रदाय सचेलाचेलमार्गी था। यही आगे चलकर कुन्दकुन्द के समय (मुनि जी के अनुसार ५ वीं शती ई० तथा प्रोफेसर सा० के अनुसार द्वितीय शती ई०) में यापनीय नाम से प्रसिद्ध हुआ । प्रो० हीरालाल जी का मत - देखिये, अध्याय १० / प्रकरण ८ / शीर्षक १.१. एवं १.२ । ६. यापनीय और उनका साहित्य / पृ. १२५-१३२ ।
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