Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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असित.
प्राचीन चरित्रकोश
असितमृग
से बाहर भगा दिया। तब अपनी दोनों पत्नीयों के साथ, | जैगीपव्य के तप तथा योगाभ्यास का प्रभाव देख कर इसे यह हिमालय पर्वत पर जा कर रहा। वहीं इसकी मृत्यु | बड़ा आश्चर्य हुआ। उस विषय में जिज्ञासा पूर्ण करने के हो गई। मृत्यु के समय, इसकी दोनों पत्नीयाँ गर्भवती | लिये, यह आश्रम से अंतरिक्ष में उड़ा । वहाँ उसने देखा थीं। उन में से, एक ने सौत के गर्भ का नाश हो इस | कि, कोई सिद्धपुरुष जैगीषव्य की पूजा कर रहे है। तब उद्देश से, अपनी सौत कालिंदी को सविध भोजन दिया। यह काफी घबरासा गया। तदनंतर जैगीषव्य भिन्न भिन्न तब वह शोक करने लगी। परंतु च्यवन भार्गव मुनि के | लोको में आगे आगे जाने लगा। पुरे समय, इसने उनका आशिर्वाद से, उसे सगर नामक सविष पुत्र हुआ (वा. पीछा किया। अन्त मे, पतिव्रताओ के लोक में आ कर रा. वा. ७०; अयो. ११०)।
जैगीषव्य गुप्त हो गया। वहाँ एक सिद्ध के यहाँ पूछने __असित काश्यप वा देवल-सूक्तद्रष्टा । इसे देवल | पर पता चला कि, वह ब्रह्मपद पर गया है। इसलिये काश्यप कहते हैं (. ९.५-२४)। यह कश्यप का पुत्र | ब्रह्मलोक जाने के लिये इसने उँची उडान ली। किन्तु था। इसका गय (अ. सं. १.१४.४) तथा जमदग्नि के | सामर्थ्य कम होने के कारण, यह नीचे गिर गया। अन्त साथ उल्लख है (अ.सं. ६.१३७.१)। इसे असित | में उस सिद्ध ने इसे वापस जाने के लिये कहा। तब जिस देवल (पं. बा.१४ ११..१८-१९: क.सं. २२.२), तथा | क्रम से यह ऊपर गया था, उसी क्रम से सब लोक असितो देवल कहते है (म. स. ४.८; शां. २२२,२६७)। उतर कर नीचे आया। जैगीषव्य को पहले ही आ कर इसकी स्त्री हिमालय की कन्या एकपर्णा ।
आश्रम में बैठा हुआ इसने देखा । तब उसके योगयह युधिष्टिर के यज्ञ में ऋत्विज था (भा.१०.७४.७)।
सामर्थ्य से यह आश्चर्यचकित हो गया। नम्र हो कर, जब युधिष्ठिर ने मयसभा में प्रवेश किया, तब अन्य ऋषि
जैगीषव्य क पास मोक्षधर्म जानने की इच्छा इसने गणों के साथ यह उनके साथ था (म. स. ४.८)। दशाई। उसके बाद, जैगीषव्य ने इसे योग का उपदेश दे नारद जब युधिष्ठिर को ब्रह्मदेव की सभा का वर्णन बता रहे | कर संन्यासदीक्षा दी। उससे इसको परमसिद्धि तथा श्रेष्ठथे, तब यह वहाँ व्रता दिकों का अनुष्ठान कर उपस्थित था | योग प्राप्त हुआ (म. श. ४९; देवल देखिये )। असित (म. स. ११.२२५)। श्रीकृष्ण तथा बलराम से मिलने
| देवल तथा यह ये दोनों एक ही है। के लिये, अनेक ऋषियों के साथ यह स्यमंतक क्षेत्र में यह कश्यप तथा शांडिल्य का एक प्रवर भी है। इसने गया था (भा. १०.८४.३) यह तथा श्रतदेव ब्राह्मण | सत्यवती को विवाह के लिये मांगा था (म. आ. ९४. कृष्ण के साथ, बहुलाव से मिलने के लिये, विदेह देश को
७३)। इसका पुत्र देवल (ब्रह्माण्ड. ३.८.२९-३३)। गये थे ( भा. १०.८६.१८) । नारदादिकों के साथ यह
| यह कश्यपकुल का गोत्रकार (मत्स्य. १९९.१९; लिंग. पिंडारक क्षेत्र में भी गया था (भा. १.१.११)।
१.६३.५१.१), तथा मंत्रकार था (वायु.५९.१०३; मत्स्य. - मुमुक्षु व्यक्ति ब्रह्मपद की प्राप्ति कैसी करे, इस विषय १४५.१०६-१०७; ब्रह्माण्ड. २.३२.११२-११३)। में जैगीषव्य (म. शां. २२२), तथा नारद के साथ (म.। २. जनमेजय के सर्पसत्र का एक सदस्य (म. आ. शां. २६७) इसका संवाद हुआ था। आदित्यतीर्थ- | ५३)। पर यह गृहस्थाश्रम में रहता था. तथा अचल भक्तिभाव असित देवल-असित काश्यप देखिये। 'से इसने योगसंपादन किया था। एकबार जैगीषव्य असित धान्वन-वेदकालीन राजा । असुरविद्या
ऋषि भिक्षकवेष में इसके आश्रम में आये। तब इसने | वेद इसका है। दस दिनों तक चलनेवाले परिप्लवाख्यान उत्तम प्रकार से उसका गौरव कर के, काफी वर्षो तक उसका में इसका उल्लेख है (सां.श्री. १६.२.२०)। इसको असित पूजन किया। बहुत काल व्यतीत हो जाने पर भी जैगी- धान्य भी कहा है (श. बा. १३.४.३.११; आ. श्री. पव्य एक शब्द भी नही बोलता, यह देख कर मन ही १०.७; पं. ब्रा. १४.११.१८.३९)। मन यह उसकी अवहेलना करने लगा। पश्चात् यह गगरी असित वार्षगण-हरित काश्यप का शिष्य । इसका ले कर समुद्र गया । जैगीषव्य वहाँ पहले से ही आ कर बैठा शिष्य जिव्हावत् बाध्योग (बृ. उ. ६.५.३ काण्व; हुआ था। उसे देख कर, इसे बड़ा ही आश्चर्य लगा। तद- ६.४.३३ माध्य.)। नंतर स्लान कर के यह आश्रम में लौट आया । आते ही असितमृग--काश्यप एक पुरोहित। इसको जनजेगीषन्य पुनः आश्रम में बैठा हुआ इसे दिखा। तब मेजय ने एक यज्ञ में निमंत्रित नही किया । तथापि इसने