Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, २. ]
कदिअणियोगद्वारे देसोहिणाणपरूवणा
[ २३
खेत्तमिद भणतेण गाहासुत्तेण सह विरोहादो । जेणोहिणाणी एगोलीए चैव जाणदि तेण ण सुत्तविरोहो त्ति के वि भणति । गेंद पि घडदे, चक्खिदियणाणादो वि तस्स जहण्णत्तप्पसंगादो । कुदो ? चक्खिदियणाणेण संखेज्जसूचिअंगुलवित्था रुस्सेहायामखेत्तव्यंतरष्ट्ठिदवत्थुपरिच्छेददंसणादो, एदस जहण्णोहिखेत्तायामस्स असंखेज्जजोयणत्तुवलंभादो च । होदु णाम असंखेज्जजोयणायामत्तमिच्छिज्ञमाणत्ताद। ? ण, एदस्स कालादो असंखेज्जगुण अद्धमासकालेण अणुमिदअसंखेज्जगुणभरोहिखे वि असंखेज्जजोयणायामाणुवलंभादो । किं च उक्कस्संदेसोहिणाणी संजदो सगुक्कस्सदव्वमादिं काऊण परमाणुत्तरादिकमेण ट्ठिदसव्वपोग्गलक्खंधे घणलोग अंतरट्ठिदे किमक्कमेण जाणदि ण जाणदि त्ति । जदि ण जाणदि, ण तस्स ओहिक्खेत्तं लोगो होदि, एगागासोलीए ठिदपोग्गलक्खंधपरिच्छेदकरणादो | ण च एसा एगागासपती घणलोगपमाणं, तदसंखेज्जदिभागाए घणलोगपमाणत्तव्विरोहादो । ण च सो
जघन्य अवधिका क्षेत्र है ' ऐसा कहनेवाले गाथासूत्र के साथ विरोध होगा ।
चूंकि अवधिज्ञानी एक श्रेणी में ही जानता है, अतएव सूत्रविरोध नहीं होगा, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं । परन्तु यह भी घटित नहीं होता, क्योंकि, ऐसा माननेपर चक्षु इन्द्रिय जन्य ज्ञानकी अपेक्षा भी उसके जघन्यताका प्रसंग आवेगा । कारण कि चक्षु इन्द्रिय जन्य ज्ञानसे संख्यात सूच्यंगुल विस्तार, उत्सेध और आयाम रूप क्षेत्र के भीतर स्थित वस्तुका ग्रहण देखा जाता है। तथा वैसा माननेपर इस जघन्य - अवधिज्ञान के क्षेत्रका आयाम असंख्यात योजन प्रमाण प्राप्त होगा ।
शंका- यदि उक्त अवधिक्षेत्रका आयाम असंख्यातगुणा प्राप्त होता है तो होने दीजिये, क्योंकि, वह इष्ट ही है ?
समाधान - ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि, इसके काल से असंख्यातगुणे अर्ध मास कालसे अनुमित असंख्यातगुणे भरत रूप अवधिक्षेत्र में भी असंख्यात योजन प्रमाण आयाम नहीं पाया जाता। दूसरे, उत्कृष्ट देशावधिज्ञानी संयत अपने उत्कृष्ट द्रव्यको आदि करके एक परमाणु आदि अधिक क्रमसे स्थित घनलोकके भीतर रहनेवाले सब पुद्गलस्कन्धों को क्या युगपत् जानता है या नहीं जानता ? यदि नहीं जानता है तो उसका अवधिक्षेत्र लोक नहीं हो सकता, क्योंकि, वह एक आकाशश्रेणी में स्थित पुद्गलस्कन्धोंको ग्रहण करता है । और यह एक आकाशपंक्ति घनलोक प्रमाण हो नहीं सकती, क्योंकि, धनलोकके असंख्यातवें भाग रूप उसमें घनलोकप्रमाणत्वका विरोध है । इसके अतिरिक्त वह
१ अ आप्रत्योः ' किं चुक्कस्स ' इति पाठः ।
२ अती 'घणलोग मंतरद्विद किमक्कमेण जाणदि चि', आप्रती ' घणलोग मंतरट्टिय ण किमक्कमेण जाणदि चि', काप्रतौ ' घणलोग मंतरद्दिदे ण किमक्कमेण जाणदि त्ति, मप्रतौहिद जाणदिन जाणदि चि' इति पाठः ।
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