Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ४४.] कदिअणियोगद्दारे वड्डमाणाउविसर अण्णाइरियाभिमय [११५ काऊण जाव आसउज्जो त्ति पंचमासे |५| पुणो कत्तियमासकिण्हपक्खचोदसदिवसे च केवलणाणेण सह एत्थ गमिय णिव्वुदो |१४|| अमावासीए' परिणिव्वाणपूजा सयलदेविंदेहि कया ति तं पि दिवसमेत्येव पक्खित्ते पुण्णारस दिवसा होति । तेणेदस्स पमाणं वीसदिवसपंचमासाहियएगुणतीसवासमेत्तं होदि | २ | । एत्थुवउज्जतीओ गाहाओ
वासाणूणत्तीसं पंच य मासे य वीसदिवसे य । चउविहअणगारेहिं बारहहि गणेहि विहरंतो ॥ ३५ ॥ पच्छा पावाणयरे कत्तियमासे य किण्हचोइसिए । समदीए रत्तीए सेसरयं छत्तु णिव्वाओं ॥ ३६ ॥
एवं केवलकालो परूविदो । परिणिव्वुदे जिणिदे चउत्थकालस्स जं भवे सेसं ।
वासाणि तिणि मासा अट्ट य दिवसा वि पण्णरसा ॥ ३७॥ संपहि कत्तियमासम्मि पण्णारसदिवसेसु मग्गसिरादितिण्णिवासेसु अट्ठमासेसु च महा
मासको आदि करके आसोज तक पांच मास [५], पुनः कार्तिक मासके कृष्ण पक्षक चौदह दिनोंको भी केवलज्ञानके साथ यहां विताकर मुक्तिको प्राप्त हुए [१४]। चूंकि अमावस्याके दिन सब देवेन्द्रोंने परिनिर्वाणपूजा की थी, अतः उस दिनको भी इसमें
नेपर पन्द्रह दिन होत है। इस कारण इसका प्रमाण बीस दिन और पांच मास अधिक उनतीस वर्ष मात्र होता है [ २९ व.५ मा. २० दि.] । यहां उपयुक्त गाथायें
भगवान महावीर उनतीस वर्ष, पांच मास और बीस दिन चार प्रकारके अनगारों व बारह गणों के साथ विहार करते हुए पश्चात् पावा नगरमें कार्तिक मास में कृष्ण पक्षकी चतुर्दशीको स्वाति नक्षत्रमें रात्रिको शेष रज अर्थात् अघातिया कौंको नष्ट करके मुक्त हुए ॥ ३५-३६॥
इस प्रकार केवलकालकी प्ररूपणा की। महावीर जिनेन्द्र के मुक्त होनेपर चतुर्थ कालका जो शेष है वह तीन वर्ष, आठ मास और पन्द्रह दिन प्रमाण है ॥ ३७॥
अब भगवान महावीर के निर्वाणगत दिनसे कार्तिक मास में पन्द्रह दिन, मगसिरको
१ भा-कापत्योः · अमवासीए ' इति पाठः।
२ जयध. १, पृ. ८०-८१.
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