Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

Previous | Next

Page 450
________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगहारे करणकदिपरूषणा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आहारतिगस्स गाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं ।। सुक्कलेस्सिएसु ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण तिण्णि समया, उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि तिसमयाहियअंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । ओरालिय-वेउब्धियपरिसादणकदीए तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए तेउभंगो । वेउब्वियसंघादण-संघादणपरिसादणकदीए काउलेस्सियभंगो । आहारतिण्णिपदाणं मणजोगिभंगो । भवसिद्धिएसु ओघं । अभवसिद्धिएसु सगपदा ओघं । सम्मादिट्ठीणमाभिणिबोहियभंगो । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी ओघं । खइयसम्मादिट्ठीसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । आहारकशरीरके तीनों पदोंका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व काल प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। शुक्ललेश्यावाले जीवों में औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा उसका अन्तर जघन्यसे तीन समय और उत्कर्षसे तीन समय और अन्तर्मुहूर्तसे अधिक तेतीस सागरोपम काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व काल प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा उसका अन्तर नहीं होता। औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा तेजलेश्यावाले जीवोंके समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन व संघातन-परिशातन कृतिके अन्तरकी प्ररूपणा कापोतलेश्यावाले जीवोंके समान है । आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा मनयोगियों के समान है। भब्यसिद्धिक जीवोंमें अपने पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। अभव्यसिद्धिक जीवों में अपने पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। सम्यग्दृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानियोंके समान है। विशेष इतना है कि तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है। क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व काल प्रमाण होता है। एक जीषकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498