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४५० छक्खंडागमे वयणाखंड
[४, १, ७२. सव्वत्थोवा वेउव्वियसंघादणकदी । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियसंघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया ।
सण्णीसु पुरिसभंगो। असण्णी तिरिक्खोघं । आहारीणं कायजोगिभंगो । अणाहारएसु सव्वत्थोवा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी। ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी अणतगुणा । एवं परत्थाणप्पाबहुगं समत्तं । इदि मूलकरणकदी परूवणा कदा।
(जा सा उत्तरकरणकदी णाम सा अणेयविहा । तं जहा-असिवासि-परसु-कुडारि-चक्क-दंड-वेम-णालिया-सलाग-मट्टियसुत्तोदयादीणमुवसंपदसण्णिज्झे ॥ ७२ ॥)
कधं मट्टियादीणमुत्तरकरणत्तं १ पंचसरीराणं जीवादो अपुधब्भूदत्तेण सकलकरणकारणकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है।
___ संज्ञी जीवोंकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । असंही जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यंच ओघके समान है। आहारक जीवोंकी प्ररूपणा काययोगियोंके समान है। अनाहारक जीवोंमें तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं । इस प्रकार परस्थानअल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
इस प्रकार मूलकरणकृतिकी प्ररूपणा की गई है।
जो वह उत्तरकरणकृति है वह अनेक प्रकारकी है। यथा- असि, वासि, परशु, कुदारी, चक्र, दण्ड, वेम, नालिका, शलाका, मृत्तिका, सूत्र और उदकादिकका सामीप्य कार्यों होता है ॥७२॥
शंका - मृत्तिका आदि उत्तरकरण किस प्रकार हैं ? समाधान-जीवसे अपृथक् होनेके कारण अथवा समस्त करणोंके कारण होनेसे
१ प्रतिषु
मट्टिवजसुचो-' इति पाठः।
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