Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 475
________________ ४४८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १, ७१. कदी असंखेज्जगुणा । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया। संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ___ सुक्कलेस्सिएसुआहारतिगमोघं । तदो ओरालियसंघादणकदी संखेज्जगुणा। वेउब्वियसंघादणकदी असंखेज्जगुणा । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । वेउब्धियसंघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । भवसिद्धिया ओघ । अभवसिद्धियाणं मदिअण्णाणिभंगो । सम्मत्ताणुवादेण सव्वत्थोवा आहारसंघादणकदी। परिसादणकदी संखेज्जगुणा । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी संखेज्जगुणा । ओरालिय उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। उनसे औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे तैजल और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। भव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। अभव्यासद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा मतिअज्ञानियोंके समान है। सम्यक्त्वमार्गणानुसार आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे उसीकी संघातनपरिशातनकात युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यात. १ प्रतिषु सुक्कलेस्सीसु' इति पाठः । २ अप्रतौ' भवसिद्धियाणं ' इति पाठः, आ-काप्रत्योस्तु नोपलभ्यते पदामिदम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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