Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 474
________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगहारे करणकदिपरूवणा [४४७ गुणं तम्हि असंखेज्जगुणं कायव्वं । असंजदाणं मदिअण्णाणिभंगो । चक्खुदंसणीणं तसपज्जत्तभंगो । अचक्खुदंसणीणं कोधभंगो । ओहिदसणाण ओहिणाणिभंगो। किण्ण-णील-काउलेस्सियाणं असंजदभंगो। तेउलेस्सिएसुसव्वत्थोवा आहारसंघादणकदी । परिसादणकदी संखेज्जगुणा । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियसंघादणकदी संखेजगुणा । वेउब्वियसंघादणकदी असंखेज्जगुणा । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियसंघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदी संखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । पम्मलेस्सिएसु सव्वत्थोवा आहारसंघादणकदी। परिसादणकदी संखेज्जगुणा। संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियसंघादणकदी संखेज्जगुणा । वेउब्वियसंघादण ...................................... गुणा कहा गया है वहां असंख्यातगुणा करना चाहिये। असंयत जीवोंकी प्ररूपणा मति. अनानियों के समान है। चक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा त्रस पर्याप्तोंके समान है। अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा क्रोधकषायी जीवोंके समान है। अवधिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है। कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले जीवोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है। तेजलेश्यावालोंमें आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसीकी परिशातनकति युक्त जीव असंख्यातगणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । उनसे औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव विशेष आधिक हैं। पद्मलेश्यावाले जीवों में आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे उसीकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। उनसे औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे वैफियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। १ प्रतिषु बेउ० ' इति पाठः। २ प्रतिषु — पम्मलेस्सीस ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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