Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा
[१५ विसेसाहिया । संघादण-परिसादणकदी संखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । चदुण्हं कसायाणं कायजोगिभंगो । अकसाईणमवगदेवेदमंगो।
मदि-सुदअण्णाणीसु सव्वत्थोवा वेउव्वियपरिसादणकदी। ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । सेसपदा ओघ । विभंगणाणीसु सव्वत्थोवा वेउब्वियसंघादणकदी । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । संघादणपरिसादणकदी असंखेज्जगुणा । वेउव्यियसंघादणपरिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदी विसेसाहिया ।
आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु सवत्थोवा आहारसंघादणकदी। परिसादणकदी [संखेज्जगुणा । संघादण-परिसादणकदी ] विसेसाहिया । ओरालियसंघादणकदी संखेज्जगुणा । वेउब्वियपरिसादणकदी असंखेज्जगुणा । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया ।
उसीकी संघासन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। चार कषाय युक्त जीवोंकी प्ररूपणा काययोगियोंके समान है । अकषायी जीवोंकी प्ररूपणा अपगतवेदियोंके समान है।
‘मति व श्रुत अज्ञानी जीवोंमें वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । शेष पोंकी प्ररूपणा ओघके समान है।
विभंगशानियोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं।
आभिनिबोधिक, श्रुत और अवधिज्ञानी जीवोंमें आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे इसीकी परिशातनकृति युक्त जीव [संख्यातगुणे हैं। उनसे इसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव] विशेष अधिक हैं । उनसे औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे वैक्रियिकशरीरकी परिशतनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष
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