Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 462
________________ १, १, ७१.) कदिअणियोगदारे करणकदिपरूवणा संखेज्जगुणा । सुगमं । ___ कोधादिचदुक्कम्मि सगपदा ओघं । अकसाईणमवगदवेदभंगो । एवं केवलणाणिकेवलदंसणि-जहाक्खादसंजदाणं । मदि-सुदअण्णाणीसु सगपदा ओघं । एवमसंजद-अभवसिद्धि-मिच्छाइटि-असण्णीणं च वत्तव्वं । विभंगणाणीसु सव्वत्थोवा ओरालियपरिसादणकदी। संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, असंखेज्जघणंगुलमेत्तसेडीए पमाणत्तादो । सव्वत्थोवा वेउब्वियसंघादणकदी, देवेसु अपज्जत्तकाले विभंगणाणाभावेण विभंगणाणेण सह विउव्वमाणतिरिक्ख-मणुस्सग्गहणादो । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, अंतोमुहत्तसंचिदत्तादो । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, पहाणीकयदेवरासित्तादो । आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु सव्वत्थोवा ओरालियसंघादणकदी, संखेज्जत्तादो । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, सम्मादिट्ठीसु असंखेज्जाणं तिरिक्खेसु विउव्वमाणाणमुवलंभादो। उनकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । यह कथन सुगम है। शोधादि चार कषाय युक्त जीवों में अपने पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। अकषायी जीवोंकी प्ररूपणा अपगतवेदियोंके समान है। इसी प्रकार केवलज्ञानी, केवलवर्शनी और यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये। मति व श्रुत अज्ञानियों में अपने पद ओघके समान हैं । इसी प्रकार असयंत, अभव्यसिद्धिक, मिथ्यादृष्टि और असंझी जीवोंके भी कहना चाहिये। विभंगशानियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृात युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे असंख्यात घनांगुल मात्र जगश्रेणियोंके बराबर हैं। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, देवों में अपर्याप्तकालमें विभंगज्ञानका अभाव होनेसे विभंगज्ञानके साथ विक्रिया करनेवाले तिर्यंच और मनुष्योंका यहां ग्रहण है । इनसे उसकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे अन्तर्मुहूर्त कालमें संचित हैं । इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंक, इनमें देवराशिकी प्रधानता है। आभिनिबोधिक, श्रुत और अवधिज्ञानी जीवों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक है, क्योंकि, वे संख्यात हैं। इनसे उसकी परिशातनकृति युक्त जीव असंस्थातगुणे हैं, क्योंकि, सम्यग्दृष्टियों में असंख्यात जीव तिर्यचोंमें विक्रिया करने १ प्रतिषु · विउम्बणाण-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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