Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ७१.] कदिआणियोगदारे करणकदिपरूषणा
। १३९ अणतगुणा । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विससाहिया । केत्तियमेत्तो विसेसो १ वेउव्विय आहारतिण्णिपदसहिदओरालियसंघादणओरालिय-तेजा-कम्मइयपरिसादणमेत्तो।
आदेसण णेरइएसु सव्वत्थोवा वेउब्वियसंघादणकदी । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । एवं सव्वणेरइय-सव्वदेवेसु । णवरि सवढे संखेज्जगुणं कायव्वं ।।
तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा वेउव्वियसंघादणकदी । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? वेउब्वियसंघादण-परिसादणमत्तेण । संघादणकदी अणंतगुणा । संघादण-परिसादणकदी असंखेजशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं।
शंका-वह विशेष कितना है ?
समाधान-वह विशेष वैक्रियिक व आहारकशरीरके तीनों पदोंसे सहित औदा. रिकशरीरकी संघातन तथा औदारिक, तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंके बराबर है।
आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे इसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार सब नारकियों और सब देवोंमें कहना चाहिये। विशेष इतना है कि सर्वार्थसिद्धि विमानमें संख्यातगुणा करना चाहिये।
तिर्यंचोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है । उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं।
शंका-कितने मात्र विशेषसे अधिक हैं ?
समाधान-वैक्रियिकशरीरकी संघातन और परिशातनकृति युक्त जीवों मात्र विशेषसे वे अधिक हैं।
औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंसे उसकी संघातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं । उनसे इसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं।
१ प्रतिषु ' -सहिदओरालियसंघादणकम्मइयमेत्तो' इति पाठः। २ अप्रतौ । संघादण. मेत्तेण', आ-काप्रयोः संघादणमत्तेण 'इति पाठः।
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