Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 463
________________ १९९) छक्खंडागमे वैयणाखंड [४, १, ४१. संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । सुगमं । वेउब्विय-आहारतिगमोघं । मणपज्जवणाणीसु सव्वत्थोवा ओरालियपरिसादणकदी । संघादण-परिसादणकदी संखेज्जगुणा । वेउव्वियतिगस्स मणुसपज्जत्तभंगो । संजदेसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीराणं सव्वत्थोवा परिसादणकदी । संघादण-परिसादणकदी संखेज्जगुणा। वेउध्विय-आहारतिगस्स मणुसपज्जत्तभंगो । एवं सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदाणं । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी णत्थि । परिहारसुद्धिसंजद-सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु णत्थि अप्पाबहुगं, तत्थ वेउब्विय-आहारतिगाभावेण एगपदत्तादो। संजदासंजदेसु ओरालियदोण्णं पदाण विभंगभंगो । वेउब्वियतिण्णिपदाणं तिरिक्खमंगो। चक्खुदंसणीण तसपज्जत्तभंगो। अचक्खुदंसणी ओघ । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी णस्थि । ओहिदसणी ओहिणाणिभंगो। किण्ण-णील-काउलेस्सिएसु ओरालियतिण्णमोघं । वाले पाये जाते हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । इसका कारण सुगम है। वैक्रियिक और आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। मनःपर्ययज्ञानियोंमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। वैफियिकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा मनुष्य पर्याप्तोंके समान है। संयतोंमें औदारिक, तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उनकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक और आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा मनुष्य पर्याप्तोंके समान है। इसी प्रकार सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि उनमें तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति नहीं होती। परिहारशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतोंमें अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, उनमें वैक्रियिक और आहारकशरीरके तीनों पदोंका अभाव होनेसे औदारिक,तैजस और कार्मणशरीरका संघातन-परिशातन रूप केवल एक पद होता है । संयतासंयतोंमें औदारिकशरीरके दो पदोंकी प्ररूपणा विभंगशानियों के समान है। वैक्रियिकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। चक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा त्रस पर्याप्तोंके समान है। अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि उनमें तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकात नहीं होती। अवधिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा अवधिशानियोंके समान है। कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें औदारिकशरीरके तीनों पदोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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