Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

Previous | Next

Page 452
________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा [ १२५ छावट्ठिसागरोवमाणि देसूणाणि । एवं आहारतिगस्स वि । णवरि णाणाजीवं पडुच्च ओघ । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च ओघं। [एगजीवं पडुच्च] जहण्णेण एगसमओ,उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि तिसमयाहियअंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । वेउव्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्करसेण तेत्तीससागरोवमाणि समयाहियपुवकोडीए सादिरेयाणि । संघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च ओघ । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णाणेगजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं ।। उवसमसम्मादिट्ठीसु ओरालिय-वेउव्वियपरिसादणकदीए ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ', उक्कस्सेण सत्त रादिदियाणि । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । वेउब्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण सत्त रादिदियाणि । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण और उत्कर्षसे कुछ कम छयासठ सागरोपम काल प्रमाण होता है। इसी प्रकार आहारकशरीरके तीनों पदोंके भी अन्तरको कहना चाहिये । विशेष इतना है कि नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर ओघके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। [एक जीवको अपेक्षा] अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तीन समय व अन्तर्मुहूर्तसे अधिकतेतीस सागरोपम काल प्रमाण होता है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक समय व पूर्वकोटिसे अधिक तेतीस सागरोपम काल प्रमाण होता है । वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिक अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम तीन पल्योपम काल प्रमाण होता है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। उपशमसम्यग्हाष्टियों में औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा औदारिक, तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे सात रात्रि-दिन प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे सात रात्रि-दिन प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। १ अप्रतौ ' समओ एगो' इति पाठः । ७.क. ५४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498