Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, १, ७१.1 कदिअणियोगद्दारे करणकदिपवणा
[ १२९ अप्पाबहुआणुगमो सत्थाण-परत्थाणप्पाबहुगभेदेण दुविहो । तत्थ सत्थाणप्पाबहुगाणुगमेण दुविह। णिद्देसा ओघेणादेसेण य । तत्थोघेण सव्वत्थोवा ओरालियपरिसादणकदी । कुदो ? असंखेज्जसेडिमेत्तादो। संघादणकदी अणंतगुणा, सव्वजीवरासीए असंखेज्जदिभागत्तादो । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, सव्वजीवरासीए असंखेज्जाभागत्तादो' । . सव्वत्थोवा वेउव्वियपरिसादणकदी, असंखेज्जघणंगुलमेत्तसेडिपरिमाणादो । संघादणकदी असंखेज्जगुणा, सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तसेडिपमाणत्तादो । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, सगुवक्कमणकालसंचिदासेसरासिग्गहणादो।
सव्वत्थोवा आहारसंघादणकदी, एगसमयसंचिदत्तादो । परिसादणकदी संखेज्जगुणा, अंतोमुहुत्तसंचिदत्तादो । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया मूलसरीरमपविस्सिय कालं करेमाणजीवमेत्तेण ।
सब्वत्थोवा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी, संखेज्जअजोगिजीवग्गहणादो । संघादण
अल्पबहुत्वानुगम स्वस्थान और परस्थान अल्पबहुत्वके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें से स्वस्थान अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । इनमें से ओघकी अपेक्षा औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे असंख्यात जगश्रेणी मात्र है । इनसे उक्त शरीरकी संघातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि, वे सब जीवराशिके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । उनसे उक्त शरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे सब जीवराशिके असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं।
. वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे असंख्यात धनांगुल मात्र जगश्रेणियों के बराबर हैं। इनसे उक्त शरीरकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग मात्र जगश्रेणियोंके बराबर हैं । इनसे उक्त शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, इनमें अपने उपक्रमणकालमें संचित समस्त राशिका ग्रहण है।
__ आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे एक समयमें संचित हैं । इनसे उक्त शरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे अन्तर्मुहूर्तमें संचित हैं। इनसे उक्त शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव मूलशरीरमें प्रवेश न कर मृत्युको प्राप्त होनेवाले जीवों मात्रसे विशेष अधिक हैं।
तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, इनमें केवल संख्यात अयोगिकेवली जीवोंका ग्रहण है। इनसे उक्त दोनों शरीरोंकी संघातन
१ प्रतिषु ' असंखेज्जभागत्तादो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org