Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 457
________________ १३० छक्खंडागमे वैयणाखंड [१, १, .. परिसादणकदी अणतगुणा, अणतरासिग्गहणादो । आदेसण णिरयगदीए गैरइएसु सव्वत्योवा वेउव्वियसंघादणकदी, गैरइयदव्वं सगुवक्कमणकालेणोवट्टिदेगखंडपमाणत्तादो। संपादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, णेरइयाणमसंखेज्जाभागपमाणत्तादो । तेजा-कम्मइयकदीए अप्पाबहुगं णस्थि, एगपदत्तादो । एवं सवगेरइय-सव्वदेवाणं च वत्तव्वं । णवरि सवढे सव्वत्थोवा वे उब्वियसंपादणकदी, संखेजजीवाणं चेव तत्थुवक्कम्मणुवलंभादो । संघादण-परिसादणकदी संखेज्जगुणा, संखेज्जरासित्तादो । तिरिक्खेसु ओरालियतिण्णिपदा ओघ, समाणकालत्तादो। सव्वत्थोवा वेउन्चियसंघादणकदी, सगोधरासिमावलियाए असंखेज्जदिमागेण सगुवक्कमणकालेण खंडिदेगखंडपमाणत्तादो । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, अंतोमुहुत्तसंचिदत्तादो। संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया मूलसरीरमपविस्सिय कयकालजीवेहि । तेजा-कम्मइयकदीए' णत्थि अप्पाबहुगं, एगपदत्तादो। परिशातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि, इनमें अनन्त राशिका ग्रहण है। आदेशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे नारक द्रव्यको अपने उपक्रमणकालसे अपवर्तित करने पर प्राप्त हुए एक खण्डके बराबर हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव मसंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे नारकियोंके असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। तैजस व कार्मणशरीरकी अपेक्षा अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, उनका यहां संघातनपरिशातनकृति रूप एक ही पद है। इसी प्रकार सब नारकी और सब देवों के भी कहना चाहिये । विशेष इतना है कि सर्वार्थसिद्धि विमानमें सबसे स्तोक वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव हैं, क्योंकि, यहां संख्यात जीवोंकी ही उत्पत्ति पायी जाती है। उनसे उक्त शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे संख्यात राशि स्वरूप हैं। तिर्यंचोंमें औदारिकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है, क्योंकि, उनका काल समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे अपनी ओघराशिको आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र अपने उपक्रमणकालसे त करनेपर प्राप्त हुए एक भाग प्रमाण है। इनसे वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे अन्तर्मुहूर्तमें संचित हुए हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है, क्योंकि, मूल शरीरमें प्रवेश न कर मरणको प्राप्त हुए जीवोंकी अपेक्षा यह संख्या विशेष अधिक ही प्राप्त होती है। तैजस और कार्मणशरीरके आश्रित अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, यहां उनका संघातन-परिशातनकृति रूप एक ही पद है। १ प्रतिषु · तेजा-कम्मइय० ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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