Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४, १, ७१.]
कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा
[ ३९१
लियसंघादण-परिसाद्णकदीए वेउन्नियतिण्णिपदाणं एइंदियभंगो । ओरालियसंघादण-परि-, सादणकदीए जहण्णुक्कस्सेण तेउ-वाऊणं भंगो | तेजा - कम्मइयसंघादणपरिसादणकदी एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ।
बादरवणफदिकाइयाण बादरवणप्फदिपत्तेगभंगो । णवरि तेजा - कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीए बादरेइंदियभंगो | तस्सेव पज्जत्तेसु ओरालियसंघादणकदीए तिरिक्खभंगो | संघाद- परसादकदीए पत्तेगसरीरपज्जत्तभंगो। एवं तेजा - कम्मइयसंघादण - परिसादणकदी । णिगोदजीवेसु ओरालियो पदाणं सुहुमेईदियभंगो | तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीव पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अड्डाइज्जपोग्गलपरियट्टा । बादरणिगोदजीवेसु ओरालियदोपदाणं' बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो | तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए बादरपुढविकाइयभंगो । बादरणिगोदपज्जत्ताणं बादरेइंदियपज्जत्त
शातनकृति और वैक्रियिकशरीर के तीनों पदोंकी प्ररूपणा एकेन्द्रियोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके जघन्य व उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा तेज व वायुकायिक जीवोंके समान है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृतिका एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे संख्यात हजार वर्ष प्रमाण काल है ।
बादर वनस्पतिकायिक जीवोंकी प्ररूपणा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके समान है । विशेष इतना है कि उनमें तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातन कृतिकी प्ररूपणा बादर एकेन्द्रियोंके समान है । बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तोंमें औदारिकशरीर सम्बन्धी संघातनकृतिकी प्ररूपणा तिर्यचोंके समान है । संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा प्रत्येकशरीर पर्याप्तोंके समान है । इसी प्रकार तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके कालकी प्ररूपणा करना चाहिये ।
निगोद जीवों में औदारिकशरीर के दो पदोंकी प्ररूपणा सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे अढ़ाई पुद्गल परिवर्तन प्रमाण काल है ।
बादर निगोद व बादर निगोद अपर्याप्त जीवोंमें औदारिकशरीरके दो पदों की प्ररूपणा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है । तेजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति की प्ररूपणा बादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान है । बादर निगोद पर्याप्तों की
Jain Education International
१ अप्रतौ ' ओरालिय० ण पदाणं', काप्रतौ ' ओरालिय० पदाणं ' इति पाठः ।
For Private & Personal Use Only
3
www.jainelibrary.org