Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 446
________________ १, १, १.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपावणा । १२९ अकसाईणमवगदवेदभंगो । मंदि-सुदअण्णाणीसु सगपदा ओघ । विभंगणाणीसु सनपदाणं णत्थि अंतरं । णवरि वेउब्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयो, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीव पड्डुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण मासपुधत्तं । ओहिणाणीसु वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमं सादिरेयं, उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोवमाणि समयाहियपुवकोडीए सादिरेयाणि । ओरालिय-वेउव्वियपरिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण छावद्विसागरोवमाणि सादिरेयाणि । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि तिसमयाहियअंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । वेउब्वियसंघादणकदीए णमणाजीवं पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि समयाहियपुव्वकोडीए सादिरेयाणि । संघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुग्च ओघं । भकषायी जीवोंकी प्ररूपणा अपगतवेदियोंके समान है। मत्यज्ञानी व अताशानियों में अपने पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विभंगशानियों में अपने पदमा अन्तर नहीं होता । विशेष इतना है कि वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। आभिनिबोधिक, श्रुत और अवधिज्ञानी जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे प्रारम्भके दो शानों में मासपृथक्त्व काल प्रमाण तथा अवधिज्ञानियों में वर्षपृथक्त्व काल प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे कुछ अधिक एक पल्योपम तथा उत्कर्षसे एक समय और पूर्वकोरिसे अधिक तेतीस सागरोपम काल प्रमाणं होता है। औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा घन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ अधिक छयासठ सागरोपम काल प्रमाण होता है। औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तीन समय व अन्तर्मुहूर्तसे अधिक तेतीस सागरोपम काल प्रमाण होता है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तस्की प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक समय व पूर्वकोटिसे अधिक तेतीस सागरोपम काल प्रमाण होता है। क्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा १ मतिषु 'सगपदा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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