Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४२० ]
छक्खंडागमे बेयणाखंड
[ ४, १, ७१.
एगजीव पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिष्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडितिभागेण देसुणेण सादिरेयाणि । आहारतिगं णाणाजीवं पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च जहणेण अतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । तेजा कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णाणेगजीव पडुच्च जहण्णेण उक्कस्सेण णत्थि अंतरं ।
मणपज्जवणाणीसु ओरालिय- वे उव्वियपरिसादणकदीए वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीव पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पटुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा | ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंत। मुहुत्तं । वेउब्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहणणेण एगसमओ, उक्करसेण अंत।मुहुत्तं । एगजीवं पडुच्च जहणणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा । तेजा - कम्मइयसंघादण - परिसादणकदीए णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । केवलणाणीणमवगदवेदभंगो |
एवं जहाक्खादसंजदाणं पि वत्तव्वं । संजदाणं मणपज्जवभंगो | णवरि ओरालिय
ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटिके तृतीय भागसे अधिक तीन पल्योपम काल प्रमाण होता है । आहारकशरीर के तीनों पदों की प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ अधिक छयासठ सागरोपम काल प्रमाण होता है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कर्ष से अन्तर नहीं होता ।
मन:पर्ययज्ञानियों में औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातन कृतिका तथा वैकिविकशरीरकी संघातन-परिशातन कृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा उसका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से कुछ कम एक पूर्वकोटि काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा उसका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से कुछ कम एक पूर्वकोटि काल प्रमाण होता है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन परिशांत कृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । केवलज्ञानियोंकी प्ररूपणा अपगतवेदियों के समान है ।
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इसी प्रकार यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये । संयत जीवोंकी प्ररूपणा मन:पर्ययज्ञानियोंके समान है। विशेष इतना है कि औदारिकशरीरकी संघातन परिशातन
१ प्रतिषु ' जद्दाक्खादिसंघादाणं पिवत्तन्वं । संघादाणं ' इति पाठः ।
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