Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 437
________________ ४१०] - छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, १. पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं चदुवीसमुहुत्ता । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तं बिसमऊणं, उक्कस्सेण बारसवासाणि एगूणवण्णरादिदियाणि छम्मासा समयाहियाणि । ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीए पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । बेइंदिय-तेइंदिय-चदुरिंदियअपजत्ताणं तिरिक्खअपज्जत्तभंगो। एवं पंचिंदियअपजत्ताणं । पंचिंदियदुगोरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं चउवीसमुहुत्ता। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तं तिसमऊणं । उक्कस्सेण ओघ । ओरालिय-वेउब्वियपरिसादणकदीए णाणाजीवं पड्डच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण सागरोवमसहस्सं पुवकोडिपुधत्तेणबहियसागरोवमसदपुधत्तं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए ओघ । वेउव्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पटुच्च ओघ । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि तिण्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुधत्तेणव्वहियाणि । संघादण संधातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तमुहूर्त व चौबीस मुहूर्त काल प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे दो समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण और दो समय कम अन्तर्मुहूर्त प्रमाण तथा उत्कर्षसे क्रमशः एक समय अधिक बारह वर्ष, एक समय अधिक उनचास रात्रि-दिवस व एक समय अधिक छह मास होता है। औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है। द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तोंके अन्तरकी प्ररूपणा तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंके कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त ब चौबीस मुहूर्त होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण मात्र व तीन समय कम अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है । उत्कर्षसे उसकी प्ररूपणा ओघके समान है । औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे एक हजार सागरोपम प्रमाण और पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व काल प्रमाण होता है। औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तेतीस सागरोपम व पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम काल प्रमाण होता है। वैक्रियिक शरीरकी संघातन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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