Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 435
________________ ११८] छरखंडागमे वेयणाखंड [४, १, ७१. 'पाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण भवणवासिय वाणवेंतर-जोदिसियाणं पादेक्कं अडदालीस मुहुत्ता । सोहम्मीसाणे पक्खो । सणक्कुमार-माहिंदे मासो । बम्हबम्होत्तरलांतवकाविढे बेमासा । सुक्कमहासुक्क-सदारसहस्सारम्मि चत्तारि मासा । आणदपाणद-आरणअच्चुदेसु छम्मासा । णवगेवज्जेसु बारसमासा । अणुदिसादि जाव अवराइद त्ति वासपुधत्तं । सबढे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । सेसपदाणं देवभंगो । एइंदिएसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्करसेण बावीसवाससहस्साणि समयाहियाणि । ओरालिय-वेउवियपरिसादणकदीए वे उव्वियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । एगजीवं पहुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए तिरिक्खभंगो । वेउव्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च तिरिक्खभंगो । एगजीवं पहुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी ओघं । एक समय है । उत्कर्षसे भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषियोंमें पृथक् पृथक् अड़. तालीस मुहूर्त, सौधर्म ईशान कल्पमें एक पक्ष, सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पमें एक मास, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर व लांतव-कापिष्ठ कल्पोंमें दो मास, शुक्र-महाशुक्र व शतार-सहस्रार कल्पोंमें चार मास, आनत-प्राणत व आरण-अच्युत कल्पोंमें छह मास, नौ ग्रैवेयकोंमें बारह मास, अनुदिशोंसे लेकर अपराजित विमान तक वर्षपृथक्व और सर्वार्थसिद्धि विमानमें पल्यो. पमके असंख्यातवें भाग काल प्रमाण होता है। शेष पदोंकी प्ररूपणा सामान्य देवोंके समान है। .. . एकेन्द्रियों में औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण और उत्कर्षसे एक समय अधिक बाईस हजार वर्ष प्रमाण होता है। औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नामा जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातनपरिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा तिर्यंचोंके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग काल प्रमाण होता है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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