Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 425
________________ १९८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, ७१. उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पहुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्त, उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ।। संजदाणं मणपज्जवभंगो । णवरि आहारतिण्णिपदा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी मोघ । एवं सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदाणं । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी णस्थि । संघादणपरिसादणकदी जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तं चेव । परिहारसुद्धिसंजदेसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्त, उक्कस्सण पुव्वकोडी देसूणा । सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु ओरालियतेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणेगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदाणं केवलणाणिभंगो । णवरि ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीणं जहण्णेण एगसमओ । संजदासंजदेसु ओरालियपरिसादणकदीए ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीए मणपज्जवभंगो । वेउव्वियतिण्णिपदाण उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटि काल है। तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम पूर्वकोटि काल है। संयस जीवोंकी प्ररूपणा मनःपर्ययज्ञानियों के समान है। विशेष इतना है कि उनमें भाहारकशरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृतिकी प्ररूपणा भोधके समान है। इसी प्रकार सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंकी प्ररूपणा करना चाहिये। विशेष इतना है कि उनमें तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति नहीं होती । तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका जघन्यसे एक समय काल है भौर उत्कर्षसे भी वही पूर्वोक्त आलाप जानना चाहिये । - परिहारशुद्धिसंयतोंमें औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटि काल है। सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतों में औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातनपरिशासनकृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त काल है। यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंकी प्ररूपणा केवल शानियोंके समान है। विशेष इतना है कि इनमें औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतियोंका काल जघन्यसे एक समय है। संयतासंयत जीवोंमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति तथा औदारिक, तैजस व कार्मणशरीर सम्बन्धी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा मनःपर्ययशानियों के समान है। इनमें वैक्रियिकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। असंयत जीवों में अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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