Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 432
________________ ४, १, ११.] कदिओणयोगद्दारे तुगकदिपरूवणा जाव सतमि ति पब्वियसंघादणकदीए णाणाजीव पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अब्दालीसरा पक्खो मासो बेमासा चत्तारिमासा छम्मासा बारहमासा। एगजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । सेसपदाणं णस्थि अंतरं । तिरिक्खेसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । एगजीवं पडुब्ध जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्कस्सेण पुव्वकोडी समयाहिया । ओरालिय-वेउब्वियपरिसादणकदीए वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेजपोग्गलपरियट्टा । एवं वेउब्बियसंघादणकदीए । णवरि णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं, तिसमयाहियं । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णारगभंगो। पंचिंदियतिरिक्खतिगम्मि ओरालियसंघादणकदीए जाणाजीव पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं, चदुवीसमुहुत्ता । एगजीव पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं प्रथम पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक चैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे क्रमशः अड़तालीस मुहूर्त, एक पक्ष, एक मास, दो मास, चार मास, छह मास और बारह मास होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । शेष पदोंका अन्तर नहीं होता। तिर्यंचोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम क्षुदभवग्रहण प्रमाण और उत्कर्षसे एक समय अधिक पूर्वकोटि काल प्रमाण होता है । औदारिक व वैक्रियिक शरीरकी परिशातनकृतिका तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अनन्त काल होता है जिसका प्रमाण असंख्यात पदगलपरिवर्तन है। इसी प्रकार वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर कहना चाहिये । विशेष इतना है कि नाना जीवोंकी अपेक्षा उसका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तीन समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच आदि तीनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्पसे अन्तर्मुहूर्त व चौबीस मुहूर्त होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण व तीन समय कम अम्तमार्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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