Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 423
________________ ९] Bista बेयणाखंड [ ४, १, ७१. उक्कस्सेण पुव्वकोडी समऊणा । तेजा कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा 1 एमजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जा पोंग्गलपरियट्टा । अवगतदेसु ओलियपरिसादणकदी णाणेगजीवं पडुच्च जहण्णेण तिण्णि समया, उक्करण अंतोगुहुत्तं । भोरालिय- तेजा - कम्मइयसंघादण - परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सन्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहणेण अतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण' पुव्वकोडी देसूणा । परसादणकदी ओघं । चत्तारिकसायाणं ओरालिय- वेउव्विय- आहारसंघादणकदी ओघ । सेसपदाणं मणजोगिमंगो | अकसायाणं अवगदवेदभंगो । एवं केवलणाणि केवलदंसणीणं वत्तन्वं । मदि-सुदअण्णाणीसु ओरालिय- वे उब्वियतिपदा ओघ । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं समय और उत्कर्ष से एक समय कम पूर्वकोटि काल है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघासन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन काल प्रमाण है । अपगतवेदियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल है । औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त काल व उत्कर्ष से कुछ कम पूर्वकोटि काल है । तैजस च कार्मणशरीरकी परिशातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । क्रोधादि बार कषाय युक्त जीवों में औदारिक, वैक्रियिक व आहरकशरीरकी संघा'तनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । शेष पदोंकी प्ररूपणा मनयोगियोंके समान है । कपाय रहित जीवों की प्ररूपणा अपगतवेदियोंके समान है । इसी प्रकार केवलज्ञानी और केवलदर्शनी जीवोंके कहना चाहिये । मतिव मज्ञानियोंमें आदारिक और वैक्रियिकशरीरके तीनों पदकी प्ररूपणा ओघ के समान है । वैजस और कार्मणशरीर की संघातन परिशात नक्कृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल १ अ-भागत्योः ' बद्द० उक्क०, कारतो ' जणुक्क' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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