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१६४ छवखंडागमे वैयणाखंड
[४, १, ४५. व्यावृत्तमिति गृहीतुमशक्यत्वात् । न च विधि-प्रतिषेधौ मिथो भिन्न प्रतिभासेते, उभयदोषानुषंगात् । ततो विधि-प्रतिषेधात्मकं वस्तु प्रमाणसमधिगम्यमिति नास्त्येकान्तविषय विज्ञानम् । न चानुमानमेकान्तविषयं येन तस्य नयत्वमुच्यते, तस्याप्युक्तन्यायतोऽनेकान्तविषयत्वात् । ततः प्रमाणं न नयः, किंतु प्रमाणपरिच्छिन्नवस्तुनः एकदेशे वस्तुत्वार्पणा नय इति सिद्धम् ।
प्रमाण-नयैर्वस्त्वधिगम इत्यनेन सूत्रेणापि नेदं व्याख्यानं विघटते । कुतः ? यतः प्रमाणनयाभ्यामुत्पन्नवाक्येऽप्युपचारतः' प्रमाण-नयौ, ताभ्यामुत्पन्न बोधौ विधि-प्रतिषेधात्मकवस्तुविषयत्वात् प्रमाणतामादधनावपि कार्ये कारणोपचारतः प्रमाग-नयावित्यस्मिन् सूत्रे परिगृहीतौ । नयवाक्यादुत्पन्नबोधः प्रमाणमेव न नय, इत्येतस्य ज्ञापनार्थ ताभ्यां वस्त्वधिगम इति भण्यते । अथवा प्रधानीकृतबोधः पुरुषः प्रमाणम् , अप्रधानीकृतबोधो नयः । वस्त्वधिगम एव क्रियते नावस्तुन इति प्रतिपत्तव्यमन्यथा नयस्य प्रमाणांतःप्रवेशतेोऽभावप्रसंगात् ।
लिये असमर्थ है । और प्रमाण विधि व प्रतिषेध दोनों परस्पर भिन्न भी नहीं प्रतिभासित होते, क्योंकि, ऐसा होनेपर पूर्वोक्त दोनों दोषोंका प्रसंग आता है। इस कारण विधि प्रतिषेध रूप वस्तु प्रमाणका विषय है, अतएव ज्ञान एकान्तको विषय करनेवाला नहीं है ।
__ अनुमान भी एकान्तको विषय नहीं करता जिससे कि उसे नय कहा जा सके, क्योंकि, वह भी उपर्युक्त न्यायसे अनेकान्तको विषय करनेवाला है । इसलिये प्रमाण नय नहीं है, किन्तु प्रमाणसे जानी हुई वस्तुके एक देशमें वस्तुत्वकी विवक्षाका नाम नय है, यह सिद्ध हुआ।
'प्रमाण और नयसे वस्तुका ज्ञान होता है ' इस सूत्र द्वारा भी यह व्याख्यान विरुद्ध नहीं पड़ता। इसका कारण यह कि प्रमाण और नयसे उत्पन्न वाक्य भी उपचारसे प्रमाण और नय हैं, उन दोनोंसे उत्पन्न उभय बोध विधि-प्रतिषेधात्मक वस्तुको विषय करनेके कारण प्रमाणताको धारण करते हुए भी कार्यमें कारणका उपचार करनेसे प्रमाण
य हैं, इस प्रकार सूत्र में ग्रहण किये गये है। नयवाक्यसे उत्पन्न बोध प्रमाण ही है, नय नहीं है; इस बातके ज्ञापनार्थ ' उन दोनोंसे वस्तुका ज्ञान होता है ऐसा कहा जाता है । अथवा, बोधको प्रधान करनेवाला पुरुष प्रमाण और उसे अप्रधान करनेवाला नय है। वस्तुका ही अधिगम किया जाता है, अवस्तुका नहीं, ऐसा जानना चाहिये; क्योंकि, इसके विना प्रमाणके भीतर प्रवेश होनेसे नयके अभावका प्रसंग आवेगा ।
१ प्रतिपु । वाक्ये न यावदप्युपचारतः' इति पाठः ।
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