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१०८] छक्खंडागमे यणाखंड
[१, १,११. मासपुधत्तम्भंतरे दव्वलिंगग्गहणाभावादो। सम्माइली आणदादिदेवेहिंतो मणुस्सेसु किण्ण भोदारिदो ? ण', वासपुधत्तादो हेट्टा सम्माइट्ठीणमाउअबंधाभावादो। एवं सव्वेसिं देवाणं जहणंतरपरूवणा कदा ।
. उवरिमगेवज्जादिहेट्ठिमदेवाणमुक्कस्संतरमणतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियट्टा । अणुदिस-अणुत्तरदेवेसु बेसागरोवमाणि सादिरेयाणि उक्कस्संतरं, अप्पिददेवेहितो मणुस्सेसुप्पज्जिय पुवकोर्डि जीविदूण सोहम्मीसाणदेवेसु बेसागरोवमाउएसु उप्पज्जिय पुणो वि पुवकोडाउओ मणुसो होदूण कालं कादूण अप्पिददेवेसुप्पणे दोपुवकोडीहि सादिरेयाणि बेसागरोवमाणि उक्कस्संतरं होदि ।
अणुहिसदेवेसु समयाहियएक्कत्तीससागरोवमाउएसु उप्पज्जिय तत्तो भविय मणुस्सेसुप्पज्जिय पुणो भुत्त- जमाणे-मुंजिस्समाणेहि य चदुहि मणुस्साउएहि ऊणचत्तारि
लिंगका ग्रहण करना सम्भव नहीं है ।
शंका-आनतादि देवों से सम्यग्दृष्टियोंको मनुष्योंमें अवतार लिवाकर जघन्य भन्तर क्यों नहीं बतलाया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, वर्षपृथक्त्वके नीचे सम्यग्दृष्टियोंके आयुका बन्ध नहीं होता; अतः उनके उक्त प्रकारसे अन्तर बन नहीं सकता था।
इस प्रकार सब देवोंके जघन्य अन्तरकी प्ररूपणा की गई है।
उपरिम अवेयको आदि लेकर अधस्तन देवोंके उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुदगलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल होता है। अनुदिश और अनुत्तर विमानवासी देवोंमें उत्कृष्ट अन्तर दो सागरोपमोसे कुछ अधिक होता है, क्योंकि, विवक्षित देवों से मनुष्यों में उत्पन्न होकर पूर्वकोटि काल जीवित रहकर दो सागरोपम आयुवाले सौधर्म-ईशान कल्पके देवों में उत्पन्न होकर फिर भी पूर्वकोटि प्रमाण आयुवाला मनुष्य होकर मरकर विवक्षित देवों में उत्पन्न होनेपर दो पूर्वकोटियोंसे अधिक दो सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट अन्तर होता है।
शंका-एक समय अधिक इकतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले अनुदिश देवों में उत्पन्न होकर वहांसे च्युत होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होकर पुनः भुक्त, भुजमान और भविष्यमें भोगी जानेवाली चार मनुष्यायुओंसे कम चार सागरोपम प्रमाण आयुवाले
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१ प्रतिषु · किण्ण ओदारिदूण' इति पाठः।
२ प्रतिषु · भंजमाणं- ' इति पारः ।
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