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३६. छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, १,७१. पंचिदियतिरिक्खभंगो। मिच्छाइट्ठीण असंजदभंगो । सण्णीणं पुरिसवेदभंगो । असण्णीणं तिरिक्खभंगो। आहारएसु ओवं । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी णस्थि । अणाहारएसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी संखेज्जा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी अणंता । एवं दव्वपमाणाणुगमो समत्तो ।
खेत्ताणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण ओरालियसंघादण. संघादणपरिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केवडिखेते ? सव्वलोए । ओरालियपरिसादणकदी केवडिखेते? लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु भागेसु सबलोगे वा । वेउव्विय-आहारतिण्णिपदा केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । एवं तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी ।
णिरयगदीए णेरइएसु वेउब्वियसंघादण-संघादणपरिसादणकदी तेजा-कम्मइय
प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। मिथ्यादृष्टियोंकी प्ररूपणा असंयतोंके समान है। संझी जीर्वोकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है। असंज्ञी जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। आहारक जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि उनके तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति नहीं होती। अनाहारक जीवोंमें औदारिक, तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यात हैं । तैजस और कार्मण शरीरकी संघातन-परिशानकृति युक्त जीव अनन्त हैं। इस प्रकार द्रव्यप्रमाणानुगम समाप्त हुआ।
क्षेत्रानुगमसे ओघ और आदेशकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार है। उनमें ओघकी अपेक्षा औदारिकेशरीरकी संघातन व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? उक्त जीव सब लोकमें रहते हैं । औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवे भागमे, असंख्यात बहुभागामे अथवा सर्व लोकमे रहते है। वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके तीनों पद युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं।
इसी प्रकार तैजसशरीर और कार्मणशरीरकी परिशातनकृतिवाले जीवोंका कथन करना चाहिये।
नरकगतिमें नारकियोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति और संघातन-परि
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१ काप्रतौ ' परिहार० ' इति पाठः ।
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