Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१,१, ७१.] कदिअणियोगहारे करणकदिपरूवणा
[१६७ केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । सेसपदा सव्वलोगे । पादरतेउकाइयपज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्खभंगो । बादरवाउकाइया बादरेइंदियभंगो । बादरवाउकाइयपज्जत्ताणमारालियंसंघादणकदी संघादण-परिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी लोगस्स संखेज्जदिभागे । सेसपदा लोगस्स असंखेज्जदिभागे। बादरवाउकाइयअपज्जत्ताणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो । तसदुगस्स पंचिंदियभंगो ।
पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसु ओरालिय-वेउव्विय-आहारपरिसादणकदी ओरालियवेउव्विय-आहार-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केवडिखेत्ते १ लोगस्स असंखेज्जदिभागे। कायजोगीसु ओघो । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी पत्थि । ओरालियकायजोगीसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केवडिखेत्ते ? सव्वलोगे । वेउब्वियतिण्णिपदा ओरालिय-आहारपरिसादणकदी केवडिखेत्त ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । ओरालियमिस्सकायजोगीणं सुहुमेइंदियभंगो । वेउब्वियकायजोगीसु अप्पणो दोपदा
वैक्रियिकशरीरके तीनों पद युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। शेष पद युक्त ये जीव सब लोकमें रहते हैं । बादर तेजकायिक पर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यचोंके समान है। बादर वायुकायिक जीवोंकी प्ररूपणा बाद एकेन्द्रियोंके समान है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति व संघातन परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं । शेष पदोंसे युक्त वे ही जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। बादर वायुकायिक अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है । त्रस व त्रस पर्याप्तौकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय जीवोंके समान है।
___ पांच मनयोगी और पांच वचनयोगी जीवोंमें औदारिक, वैक्रियिक व आहारकशरीरकी परिशातनकृति तथा औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? उक्त जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। काययोगी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि इनमें तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृति नहीं होती। औदारिककाययोगी जीवोंमें
औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? उक्त जीव सब लोकमें रहते हैं । औदारिककाययोगिोंमें वैक्रियिकशरीरके तीनों पद तथा औदारिक व आहारकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? उक्त जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। औदारिकमिश्रकाययोगियोंकी प्ररूपणा सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान है। वैक्रियिककाययोगियों में अपने दो पद युक्त जीव लोकके
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